सब ऊंट के मुँह में जीरा है
मुफ्त की नौकरी बैठे ठाले
फिर भी हरदम पीड़ा है
स्कूल सरकारी देर से खुलता
मैदानों में कचरा उड़ता
फटी कटी सी टाट पट्टी पर
खुली किताब, पर कुछ न बूझता
वक़्त परीक्षा का; प्रश्नपत्र
जो बनाता वो ही उत्तर लिखता
जिसको पढना उसकी किस्मत
और अकल पर भूसा भरता
रोज़ रोज़ आंदोलन-जाम
विधान भवन रोज़ सिसकता है
जिसके हाथ में भविष्य कल का
क्या 'ऐसा' शिक्षक हो सकता है ?
~यशवन्त माथुर©
(स्पष्ट पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें) |
vibha rani Shrivastava
ReplyDeleteरोज़ रोज़ आंदोलन-जाम
विधान भवन रोज़ सिसकता है
जिसके हाथ में भविष्य कल का
क्या 'ऐसा' शिक्षक हो सकता है ?
ये हिंदुस्तान है
यहाँ ऐसा ही होता है
हार्दिक शुभकामनायें
Asha Saxena
ReplyDeleteमानना पड़ेगा बेवाक प्रस्तुती |
आशा
madhu singh
ReplyDeletedronacharyo ki hakikat batati sundar rachna
Maheshwari Kaneri
ReplyDeleteजहा शिक्षा बिकती हो वहा सब कुछ हो सकता है..
Kailash Sharma
ReplyDeleteआज के यथार्थ का बहुत सटीक चित्रण..
DrNisha Maharana
ReplyDeletebilkul hote hain mathur sahab .....dharam iman kuchh nahi jante aise teacher ......
Virendra Kumar Sharma
ReplyDeleteहां ग्रामीण भारत का शिक्षक ऐसा ही होता है .बिना किवाड़ों के मकान जैसा .
Ramakant Singh
ReplyDeleteचिंतन को प्रेरित करती कर्तव्य बोध को इंगित कराती
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर..
ReplyDeletekyaa theek kaha hai.
ReplyDeleteVinnie,
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