मैं काँटा हूँ .....
काँटों की तरह हाथों को
कभी चुभता हूँ मैं
दुश्मन की तरह नज़रों को
कभी खटकता हूँ मैं
मुझ में नमी नहीं
शुष्कता समाई हुई है
मुझे छू कर गुजरती
हवा भी गरमाई हुई है
फूल की तरह न शाम को
कभी बिखरता हूँ मैं
हर खास ओ आम को
तीखा लगता हूँ मैं
मैं सच में काँटा हूँ
काँटा ही बने रह कर
कभी खुद को भी चुभ कर
खुद को ही खटकता हूँ मैं।
~यशवन्त माथुर©
yashoda agrawal
ReplyDeleteआपने लिखा....
हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 08/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
Manoj Goyal
ReplyDeletekya baat hai aap to bahut khub likhte ho
vibha rani Shrivastava
ReplyDeleteमैं सच में काँटा हूँ
काँटा ही बने रह कर
कभी खुद को भी चुभ कर
खुद को ही खटकता हूँ मैं।
!!
God Bless U
Maheshwari Kaneri
ReplyDeletebahut sundar rachana..
Anita Nihalani
ReplyDeleteकांटा जब जान जाता है कि वह कांटा है फूल बनने की यात्रा शुरू हो जातीहै..
Digamber Naswa
ReplyDeleteबहुत खूब ... कांटे के दर्द हर कोई नहीं समझ पाता ...
बहुत उम्दा लिखा है ...
Rewa tibrewal
ReplyDeletewah ! yashwant bhai....kanto par is say sundar likha kabhi padha nahi
Ramakant Singh
ReplyDeleteमैं सच में काँटा हूँ
काँटा ही बने रह कर
कभी खुद को भी चुभ कर
खुद को ही खटकता हूँ मैं।
अद्भुत आत्म चिंतन और आत्म अवलोकन
Reena Maurya
ReplyDeletebhavpurn rachana...
RAJESH KUMARI
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
कालीपद प्रसाद
ReplyDeleteमैं सच में काँटा हूँ
काँटा ही बने रह कर
कभी खुद को भी चुभ कर
खुद को ही खटकता हूँ मैं।- good itrospection
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
बहुत उम्दा लिखा है
ReplyDeleteदर्द को महसूस करने के लिए कांटे भी जरुरी हैं.
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