16 June 2013

मैं चुप नहीं रह सकता ...

न जाने कैसे
कुछ लोग
ओढ़े रहते हैं
मौन का आवरण
कोलाहल में भी
बने रहते हैं शांत
रुके हुए पानी की तरह

मैंने कोशिश की कई बार
उन जैसा बनने की
शांति और सन्नाटों को
महसूस करने की 

पर अफसोस!
मैं पानी की बहती धार हूँ
जो बक बक करती जाती है
अपनी कल कल में
अपनी धुन में
इस बात से बे परवाह
कि कोई सुन रहा है
या नहीं

मैं ऐसा ही हूँ
मौन और मेरा
छत्तीस का रिश्ता है
मौन आकर्षित कर सकता है
मगर मैं
निर्जीव दीवारों से भी
कह सकता हूँ
अपने मन की हर बात
क्योंकि
मैं चुप नहीं रह सकता। 

~यशवन्त माथुर©

4 comments:

  1. निर्जीव दीवारों से भी
    कह सकता(सकती) हूँ
    अपने मन की हर बात
    क्योंकि
    मैं चुप नहीं रह सकता(सकती)।
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. बहुत सुन्दर. चुप रहना भी नहीं चाहिए.

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  3. no need to change yourself .do what your heart says .nice expression of your feelings .

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