21 June 2013

खंडित उत्तर हैं, प्रश्न गायब हैं यहाँ......

सांसें चलती हैं, यूं तो जीवन के लिये। 
सांसें थमती हैं,यूं तो जीवन के लिये॥

पहाड़ टूटते हैं, सबक सिखाने के लिये ।
कुछ लोग बचते हैं, मंज़र बताने के लिये॥   

लाशें बिछी पड़ी हैं, मंदिर के द्वार पर। 
जो खड़े हैं गिर रहे हैं, जीवन से हार कर॥ 

मौत भी चल रही है, बेईमान बनने के लिये। 
इंसान की संगत का, असल असर दिखाने के लिये॥  

समझ आया न अब तक, क्या हो रहा है यहाँ ।
खंडित उत्तर हैं, प्रश्न गायब हैं यहाँ॥ 

सांसें चलती हैं, यूं तो जीवन के लिये। 
सांसें थमती हैं,यूं तो जीवन के लिये॥

बारिश थम चुकी है, ज़मींदोज़ अरमानों के लिये। 
सन्नाटों में कुछ भी नहीं, सपने सजाने के लिये॥

~यशवन्त माथुर©

7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।

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  2. सटीक प्रस्तुति

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  3. दिल को चाक चाक करती गहरे अल्फाज़ लिए वाह

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  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  5. यशवंत माथुर भाई जी आपकी अंतिम लाइन ने मेरे पिताजी की मृत्यु के क्षणों को याद दिला गया

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  6. सच! सन्नाटों में कुछ भी नहीं .. सपने दफन से हैं ..

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