09 June 2013

काश! दुनिया गोल न होती

सबने बना रखी है
अपनी अपनी एक दुनिया
जिसके भीतर
सिमटे रहते हैं लोग 
कृत्रिम हंसी का
मुखौटा लगाए 
न बाहर जा पाते हैं
अपनी धुरी से
न आने देते हैं भीतर
बंद दरवाजों को साथ लिये
अपने परिपथ पर
गोल गोल घूमती 
सबकी अपनी अपनी दुनिया
अनजान है
आस-पास के
बदलावों से
कोई मीलों आगे है
कोई मीलों पीछे
कोई अभी सपना है
कोई हकीकत
काश!
दुनिया गोल न होती
टेढ़ी मेढ़ी होती
रंग बदलती
इंसानी सोच की तरह
तो कर सकती अतिक्रमण
और जान सकती
अपने दायरे के
बाहर का हाल ।
 
~यशवन्त माथुर©

8 comments:

  1. दुनिया गोल नहीं होती तो हम भी अपनी धुरी में कैद नहीं होते हम स्वतंत्र होते तो कितना अच्छा होता बहुत खूबसूरत सोच अच्छी अभिव्यक्ति !!

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  2. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।

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  3. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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  4. काश!
    दुनिया गोल न होती
    bahut sundar

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  5. काश!
    दुनिया गोल न होती
    टेढ़ी मेढ़ी होती
    रंग बदलती
    इंसानी सोच की तरह
    तो कर सकती अतिक्रमण
    और जान सकती
    अपने दायरे के
    बाहर का हाल

    बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति

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  6. bahut achha likha hai, ek sandesh ki hame apne dayre se nikal kar dekhna chahiye, sochna chahiye aur karna chahiye.

    shubhkamnayen

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