कंक्रीट की बस्ती में
गर्मी से झुलसता इंसान
बरसात में भीगता इंसान
ठंड में ठिठुरता इंसान
विलासिता में डूबा इंसान
हवा में उड़ता इंसान
कृत्रिम हवा में जीता इंसान
खुद के कर्मों से हार कर
खो रहा है
हरियाली
ऊंची शाखों
और पत्तों की घनी छत
पहाड़ और नदियां
इससे पहले की प्रकृति
रूठ कर
मांगने लगे
हर साँस का हिसाब
हम चेत जाएँ
तो अच्छा होगा।
~यशवन्त माथुर©
प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©
इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।
05 June 2013
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शुभ प्रभात
ReplyDeleteआज का बच्चा
40 साल बाद
कितने पानी से नहाएगा
और..
कितना पियेगा
सादर
एक चेतावनी
ReplyDeleteसुन्दर रचना
पर्यावरण दिवस पर सुंदर बोध देती पंक्तियाँ...
ReplyDeleteरक्षा तो करो
ReplyDeleteधरा कहे पुकार
वृक्ष तो लगा ....
खूबसूरत संदेश पर्यावरण दिवस पर
ReplyDeleteपर्यावरण दिवस पर चेतावनी देती सुंदर रचना..
ReplyDelete