लगने लगती है
गुमनाम सी दुनिया
जब असर दिखाती है
चढ़ते बुखार की तपिश
सुध बुध खो कर
चादर में सिमटती
अकड़ती सी देह
अपने अवसान की प्रतीक्षा में
बदलती है करवटें
गंगा जल के आचमन के साथ
गले से उतरती
दवाओं की रंगीन गोलियां
अंदर घुल कर
जब दिखाती हैं अपना असर
बाहर से भिगोता पसीना
चीरने लगता है
बंद आँखों के भीतरी अंधेरे को
धीरे धीरे खुलती
नींद से जागती आँखें
ऊर्जावान होती देह
ठिठक कर देखने लगती है
चलती फिरती दुनिया
और हो जाती है
पहले की तरह गतिशील
बुखार के अवरोधक को
पार कर के।
~यशवन्त माथुर©
(पिछला एक हफ्ता तेज़ बुखार की चपेट मे बीता है। यह पंक्तियाँ उसी से प्रेरित हैं। दवाओं ने इस काबिल बनाए रखा कि कुछ देर को नेट पर बना रहा और हलचल पर भी मेरी पोस्ट निर्बाध आती रहीं।)
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Take care!
ReplyDeletebukhar bhi inspire karti hai... bohat achhi rachna Yashwant ji
ReplyDeleteइस मौसम का बुखार ....बहुत हालत ख़राब कर देती है... दवा ही गंगा जल है सही कहा
ReplyDeleteजल्द स्वस्थ हों ।
ReplyDeleteबुखार की तपिश, देह का टूटना और दवाओं का अहसान मानते हुए फिर से शक्ति पाकर जीवन की यात्रा पर निकलना...बहुत खूबसूरती से इन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है..शुभकामनायें..
ReplyDeletewell expressed...
ReplyDeleteबुखार को हलके में न ले
जल्दी स्वस्थ हो जाइये...
ReplyDeletetake care
:-)
dekho bukhar bhi creative hota hai .. aage se dnt make shikayat :)
ReplyDeleteइस मौसमी बुखार से बचके रहना॥ अपना ध्यान रखना यशवंत्।
ReplyDeleteबुखार से प्रेरित सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपके बुखार ने मेरा साथ दे दिया
ReplyDeleteनींदिया रानी नहीं आ रही है
बुखार आपके पोस्ट तक ला दिया
take care
get well soon
God Bless U
ध्यान रखिये ...
ReplyDeleteबुखार में भी रचनाएँ जारी हैं.. क्या खूब प्रेमी हैं लेखन के आप.. बहुत खूब..
ReplyDeleteस्वस्थ रहिये, आबाद रहिये और हमें अच्छी रचनाएँ पढ़ाते रहिये!