20 July 2013

बुखार के बाद.....

लगने लगती है
गुमनाम सी दुनिया
जब असर दिखाती है
चढ़ते बुखार की तपिश

सुध बुध खो कर
चादर में सिमटती
अकड़ती सी देह
अपने अवसान की प्रतीक्षा में
बदलती है करवटें  

गंगा जल के आचमन के साथ
गले से उतरती
दवाओं की रंगीन गोलियां
अंदर घुल कर
जब दिखाती हैं अपना असर
बाहर से भिगोता पसीना
चीरने लगता है 
बंद आँखों के भीतरी अंधेरे को

धीरे धीरे खुलती
नींद से जागती आँखें
ऊर्जावान होती देह
ठिठक कर देखने लगती है
चलती फिरती दुनिया
और हो जाती है
पहले की तरह गतिशील
बुखार के अवरोधक को
पार कर के।

 ~यशवन्त माथुर©
(पिछला एक हफ्ता तेज़ बुखार की चपेट मे बीता है। यह पंक्तियाँ उसी से प्रेरित हैं। दवाओं ने इस काबिल बनाए रखा कि कुछ देर को नेट पर बना रहा और हलचल पर भी मेरी पोस्ट निर्बाध आती रहीं।)

13 comments:

  1. bukhar bhi inspire karti hai... bohat achhi rachna Yashwant ji

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  2. इस मौसम का बुखार ....बहुत हालत ख़राब कर देती है... दवा ही गंगा जल है सही कहा

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  3. जल्द स्वस्थ हों ।

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  4. बुखार की तपिश, देह का टूटना और दवाओं का अहसान मानते हुए फिर से शक्ति पाकर जीवन की यात्रा पर निकलना...बहुत खूबसूरती से इन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है..शुभकामनायें..

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  5. well expressed...
    बुखार को हलके में न ले

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  6. जल्दी स्वस्थ हो जाइये...
    take care
    :-)

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  7. dekho bukhar bhi creative hota hai .. aage se dnt make shikayat :)

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  8. इस मौसमी बुखार से बचके रहना॥ अपना ध्यान रखना यशवंत्।

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  9. बुखार से प्रेरित सुन्दर रचना

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  10. आपके बुखार ने मेरा साथ दे दिया
    नींदिया रानी नहीं आ रही है
    बुखार आपके पोस्ट तक ला दिया
    take care
    get well soon
    God Bless U

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  11. बुखार में भी रचनाएँ जारी हैं.. क्या खूब प्रेमी हैं लेखन के आप.. बहुत खूब..
    स्वस्थ रहिये, आबाद रहिये और हमें अच्छी रचनाएँ पढ़ाते रहिये!

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