'जहां न पहुंचे रवि
वहाँ पहुंचे कवि '
जो कह न सके कभी
वही कह देता अभी
कविता और कवि ......।
न ज्ञान व्याकरण का
न भाषा का, शुद्धता का
हर कोई है 'बच्चन','पंत'
महा भक्त 'निराला' का
न कॉमा, विराम कभी
न छंद,अलंकार कभी
उसके कुतर्क ही सही
'दिनकर' वही, 'कबीर','सूर' वही
हर गली दिखता वही
अभी यहाँ,फिर वहाँ कभी
कुकुरमुत्ते की सी छवि
डूबती कविता,उतराता कवि
खुद के लिखे को कभी
किताब बना छपवाता कवि
कीमत डेढ़ सौ,मुफ्त बाँट पाँच सौ
मुस्कुराता- इतराता कवि
कविता और कवि.....।
~यशवन्त माथुर©
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सच्चाई सौ प्रतिशत.
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteखूबसूरत सच्चाई
ReplyDeleteGod Bless U
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआधुनिक कवियों पर सुन्दर व्यंग्य
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा.... अच्छी रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा , साहित्य को पढ़े बिना, कभी भी अच्छा नही लिखा जा सकता ,आभार
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html
सार्थक रचना .आभार
ReplyDeletekhubsurat sach...
ReplyDelete.बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? #
ReplyDeleteआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 10/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
ज़बरदस्त कटाक्ष साथ ही साथ कटु यथार्थ !
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा यशवंत..कवि हमेशा बेचारा ही होता है..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसच्चाई को बतलाती रचना बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेचारा !
ReplyDeleteसत्य से रूबरू ....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसही कहा....
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