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कितने अच्छे लगते हो तुम
यूं खिले हुए
मुस्कुराते हुए
रात की नींद के बाद
खुली हुई खिड़की से
झाँकता
तुम्हारा खिला खिला चेहरा
और उससे
आती तुम्हारी
खिली खिली खुशबू
बना देती है
हर सुबह सुहानी।
दिन भर
तुम से खेलते हैं
कितने ही तितलियाँ -भौंरे
और मुझ जैसे इंसान
शाम होते होते
तुम पर छा जाती है थकान
हवा की हल्की थपकी के साथ
तुम बिखेर देते हो खुद को
धरती माँ की गोद में
क्योंकि सूर्यास्त के बाद
दूसरी कलियाँ
करने लगती हैं तैयारी
तुम्हारे जैसा ही रूप धरने की।
फूल!
तुम साक्षात जीवन चक्र हो
तुम खुद मे ही
कविता-कहानी
और लंबे आलेख हो
तुम चिराग हो
जो रोशनी दिखाते दिखाते
अंधेरे मे जीता है।
फूल!
तुम अतुल्य हो
फिर भी तुलते हो
लंबी मालाओं-लड़ियों
और चक्रों में सज कर
किसी के श्रंगार को
स्वागत को
और कभी अंतिम यात्रा का
सहयात्री बन कर
कराते हो एहसास
किसी के जाने पर भी
खुद के अस्तित्व का
क्योंकि
तुम बने हो
सिखाने के लिये
समर्पण का पाठ।
~यशवन्त माथुर©
waaah bahut hi sunder rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen
फूलों-सी कोमल, सुंदर रचना...
ReplyDelete
ReplyDeleteकविता का भाव बहुत सुन्दर है
latest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
फूल दुख में सुख में हमारे साथ होते हैं..सुन्दर भाव..
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति......
ReplyDeleteफूलों की तरह ही
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...
:-)
खुबसूरत भाव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeletephoolon ka saath bahut mohak hota hai vo marne ke bad bhi sath rahte hain
ReplyDeleterachana
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह सुंदर
ReplyDeletetab hi to fool sam bhaw se BHAGAWAN, SHADI, AUR MRITYU KA SHRINGAAR HAI
ReplyDeletebahut sundar ..bhaavpoorna aur arthpoorna rachna yashvant ji ..mujhe bahut pasand aai ..padh ke man mei ek nayi anubhuti hui ..badhai
ReplyDeleteOs ki boond: मनी प्लांट ...
इसे कविता न कहें तो क्या कहें
ReplyDeleteफूल बनकर हरेक लफ्ज़ निकला है ।