27 July 2013

फूल

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फूल!
कितने अच्छे लगते हो तुम
यूं खिले हुए
मुस्कुराते हुए
रात की नींद के बाद
खुली हुई खिड़की से
झाँकता
तुम्हारा खिला खिला चेहरा
और उससे
आती तुम्हारी
खिली खिली खुशबू
बना देती है
हर सुबह सुहानी।

दिन भर
तुम से खेलते हैं
कितने ही तितलियाँ -भौंरे
और मुझ जैसे इंसान
शाम होते होते
तुम पर छा जाती है थकान
हवा की हल्की थपकी के साथ
तुम बिखेर देते हो खुद को
धरती माँ की गोद में
क्योंकि सूर्यास्त के बाद
दूसरी कलियाँ
करने लगती हैं तैयारी
तुम्हारे जैसा ही रूप धरने की।

फूल!
तुम साक्षात जीवन चक्र हो
तुम खुद मे ही
कविता-कहानी
और लंबे आलेख हो
तुम चिराग हो
जो रोशनी दिखाते दिखाते
अंधेरे मे जीता है।

फूल!
तुम अतुल्य हो
फिर भी तुलते हो
लंबी मालाओं-लड़ियों
और चक्रों में सज कर
किसी के श्रंगार को
स्वागत को
और कभी अंतिम यात्रा का
सहयात्री बन कर
कराते हो एहसास
किसी के जाने पर भी
खुद के अस्तित्व का
क्योंकि
तुम बने हो
सिखाने के लिये
समर्पण का पाठ। 

~यशवन्त माथुर©

15 comments:

  1. waaah bahut hi sunder rachna

    shubhkamnayen

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  2. फूलों-सी कोमल, सुंदर रचना...

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  3. फूल दुख में सुख में हमारे साथ होते हैं..सुन्दर भाव..

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  4. खुबसूरत अभिवयक्ति......

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  5. फूलों की तरह ही
    बहुत ही सुन्दर रचना...
    :-)

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  6. खुबसूरत भाव

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  7. phoolon ka saath bahut mohak hota hai vo marne ke bad bhi sath rahte hain

    rachana

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  9. tab hi to fool sam bhaw se BHAGAWAN, SHADI, AUR MRITYU KA SHRINGAAR HAI

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  10. bahut sundar ..bhaavpoorna aur arthpoorna rachna yashvant ji ..mujhe bahut pasand aai ..padh ke man mei ek nayi anubhuti hui ..badhai

    Os ki boond: मनी प्लांट ...

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  11. इसे कविता न कहें तो क्या कहें
    फूल बनकर हरेक लफ्ज़ निकला है ।

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