नहीं चाहता समझना
क्या है सच
और उसके पीछे का
मर्म
मैं खुश हूँ
खुद के ऊपर छाए
झूठ के आवरण के भीतर
जहां महफूज है
मेरा मन
टेक लगा कर
वर्तमान के सिरहाने पर।
~यशवन्त माथुर©
प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©
इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।
29 August 2013
नहीं चाहता समझना
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
26 August 2013
"फेक -स्टिंग - ऋचा " (अनीता राठी जी की कहानी)
(अनीता राठी जी) |
सोशल नेटवर्किंग साइट्स (जैसे फेसबुक) जहां अनेक लोगों से हमे प्रत्यक्ष जुडने और हमारे विचारों पर त्वरित प्रतिक्रिया प्राप्त करने का साधन हैं वही ऐसी साइट्स पर निजी जानकारियाँ साझा करना मुसीबत को दावत देने जैसा हो सकता है।
अतः किसी अनजान से कभी भी अपना फोन नंबर या घर का पता साझा न करने का संदेश देती यह कहानी उनकी फेसबुक वॉल से साभार यहाँ भी प्रस्तुत है-
"फेक -स्टिंग - ऋचा "
(दोस्तों फेसबुक पर हो रहे क्राइमस की एक दास्ताँ .... एक ऐसी कहानी जो इस सोशल - मीडिया के रिश्तो की एक बानगी प्रस्तुत करती है .... बताइयेगा .... कैसी लगी ...)
टिर्र्र्रिन टिर्रीन .... हेलो ... हे हाई ...
कैसी हो ऋचा ....?... जी ठीक हु ...
कुछ कहो ... ?
में क्या कहूँ .... अरे ... कल इनबॉक्स में तो बहोत मजाक कर रही थी
तो क्या हुआ ...?? मजाक कर रही थी न .... मजाक, हर वक़्त तो नहीं होती ...
नहीं नहीं ... ऋचा तुम्हारी प्रोफाइल पिक बहोत ही ब्यूटीफुल है
अच्छा ......... !
रियली, और सुनाओ क्या क्या शौक है ... तुम्हे पढने लिखने के अलावा ...
दोस्तों से बातें करना , घूमना, वाटर-गेम्स।
अच्छा फिर तो खूब बनेगी हम दोनों में ... मुझे भी घूमने का बहोत शौक है ... चलो न किसी दिन मिलते है हम तो एक ही शहर में रहते है ......
हाँ .... किन्तु ऐसे कैसे ... मैं तो आपको जानती नहीं , पहचानती नहीं ऐसे कैसे में आपके साथ .....
ओह ... ऋचा ... जान भी लेना ... पहचान भी लेना ... मिलो तो ....
नहीं ... नहीं ... किसी ने देखा तो ... नहीं पापा को बुरा लगेगा ..
अरे १-२ घंटे की ही तो बात है ... अच्छा बताओ कब मिल रही हो ...
नहीं मैं नहीं मिल सकती ..... हेलो हेलो ... हेलो हेलोओ .... हे बुरा मान गए ... चलो मिलेंगे .... तब तक बात तो कर सकते है न।
ओह हाँ ... अच्छा ऋचा ... एक बात पूछु आपसे ,... मैं पिछले एक महीने से तुमसे बात कर रहा हु ... तुम्हे तो मेरी याद आती नहीं ... बस मैं ही याद करता हु ... है न ... नहीं आती न मेरी याद ......
ऐसा नहीं है ... दोस्त की याद कैसे नहीं आएगी लेकिन में बहोत ही पारंपरिक परिवार से हु ... संजय ... मेरे पेरेंट्स मुझे अलाऊ नहीं करते और नहीं मैं खुद पसंद करती हु ये सब ....
अरे .... पेरेंट्स का बहाना मत बनाओ ... तुम ही मुझे नहीं चाहती .... अच्छा सच कहो ... ऋचा तुम्हारी लाइफ में मेरी क्या वेल्यु है ..... बस एक दोस्त ..... लेकिन में तो तुम्हे बहोत चाहता हूँ , मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हु , आज कहना ही है
क्या ....???
यही की मैं तुम्हे बहोत चाहने लगा हु , लेकिन ये सब में कह नहीं पाया ... आज लेकिन मैं कहना चाहता हु ... की मैं .... मैं
मैं तुमसे बेहद प्यार करता हु .....
अरे ये सब क्या है .... हम अच्छे दोस्त है , ठीक है पिछले कुछ दिनों से डेली तुम बात करते हो. तो अच्छा लगता है मगर इसका या मतलब कटाई नहीं की मैं तुमसे प्यार व्यार करती हु ... नहीं ... संजय .... plz ... मुझे गलत मत समझो ....
नहीं मैं जानता हु तुम भी मुझे चाहती हो ... कहो तुम मुझे चाहती हो ... हो की नहीं ...
अ अ अ ... हाँ लेकिन एक दोस्त की तरह ...
बस इतना काफी है .... सुनो एक बार मेरी खातिर बोल दो .... वही ढाई अक्षर ... मैं तुम्हारे मुहं से सुनना चाहता हूँ ... ?
हे यू ... तुम पागल हो ... ऐसा नहीं हो सकता , तुम मेरे दोस्त हो सिर्फ दोस्त ....
ठीक है दोस्त को ही बोल दो .... मेरी ख़ुशी के लिए .... plz ... plz ...
अरे ... ओके बाबा ... I Love You ..... अब तो खुश
या थैंक्स ... सुनो कब मिलोगी ....
.... देखेंगे .... ओके अब बाय
बाय ..... ऋचा सोच में पड़ गई , अरे ये मैंने संदीप को क्या बोल दिया ... कहीं वो मुझे सच में न प्यार करने लगे .... न बाबा ना ...
डिनर फिनिश कर ऋचा त.व. देख रही थी की .... फ़ोन फिर से घनघना उठा टिर्र्र्रिन टिर्रीन .... हेलो ... हे हाई ...
कैसी हो ऋचा ....?.
.. जी .
कुछ कहो ... ?
में क्या कहूँ .... अरे ... इस वक़्त फ़ोन ... पापा डांटेंगे ... बंद करो
करता हु बस एक बात कहनि थी .... ऋचा i love you ..... मैं तुम्हारे लिए पागल हो रहा हु ... हर वक़्त बस तुम ही तुम
अर्रर्र्रे ...?? ... ऐसा नहीं कहते ... अपना ख्याल रखो न गुड नाईट बाय
ऋचा एक बार बोल दो .... रिचा ने अनजाने ही बोल दिया i love you ... ताकि घर में किसी को पता न चले की फ़ोन पर बात हो रही है ...सोचा की जल्दी पीछा छूट जायेगा
... ओके माय लव बर्ड ....
उफ़्फ़…. तुम भी न कुछ भी ... कुछ भी बोल देते हो…। चलो कल बात करेंगे ...
सुबहो सुबहो ऋचा ने फ़ोन देखा 5 मिस काल ..... और १ ० सन्देश .... सब में एक ही बात i love you ऋचा .... ऋचा को भी न जाने क्यों न चाहते हुए भी वो शब्द अच्छे लगने लगे .... ... घर के सब लोग अपने अपने कम में व्यस्त थे ..... ऋचा ... भी कोर्स
की किताब उठा पढने लगी ...... छत पर अकेले थी .... की फिर से फ़ोन पर घंटी सुनाई दी ... फ़ोन उठाया देखा .... संजय .ही था ... हे .... गुड मोर्निंग ... लव बर्ड ....
गुड मोर्निंग .... सुनो ये क्या है .... रात २ बजे काल . ... फिर .. ३. बजे ... फिर ४ बजे ... ५ बजे .... सोये नहीं रात भर ... पागल हो .....
हाँ ऋचा तुम्हारे साथ को तरसता रहा पूरी रात ... अब आँखें भारी हो रही है ...
तो सो जाओ ....
तुम सुला दो .... मैं सोच रहा हु ... तुम मेरे पास हो , मेरा सर तुम्हारी गोद में है , तुम मेरे माथे को सहला रही हो ... फिर ... अचानक मैंने तुम्हे अपनी बांहों में कस के पकड़ लिया और .... और ऋचा ... और मैं तुम्हे बेतहाशा ... प्यार करने लगा ....
ओह ...हे ... हेलो ... इतना मत ऊडो .... जमीं पे रहो मजनू .... ये पागलपन है
हाँ ऋचा मैं पागल हो गया हु तुम्हारी आवाज़ , तुम्हारी तस्वीर , तुम .... मुझे पागल कर रही हो .... ..... प्ल्ज़ एक बार कह दो
मैं जो सुनना चाहता हु ...........
ऋचा मारे डर के कोई ऊपर न आजाये ..... तुरंत बोल पडी ... Ya . संजय . ... आई लव यू टू .... टू मच .... मिस यू ... लव यू ..... ओके नाऊ बाय ....
बाय बेबी ........
पागल .... कहीं के ... । इतना कह ऋचा ने फ़ोन काट दिया ..... दुसरे दिन फेस बुक पर एक नयी रिक्वेस्ट देखि दोस्ती के लिए ... देखा प्रोफाइल ठीक था ... ऐड कर लिया ..... कुछ देर इनबॉक्स में जान पहचान की बातें हुई ... ऋचा भोली सीधी खुद और सीधी ही उसकी दुनिया .... दोस्तों से गप्पें मरना , पढना या घर का काम .... और मस्त रहना ... बातों बातों में .... मयंक ने नम्बर माँगा उसने दे दिया ...... क्या हुआ .... बात ही तो करेगा ... वहां दूर कश्मीर से चल कर आ थोड़े ही जायेगा ...... चलो कोई नहीं
टिर्र्र्रिन टिर्रीन .... हेलो ... हे हाई ...
कैसी हो ऋचा ....?... जी ठीक हु ...
कुछ कहो ... ?
क्या कहु ... तुम बताओ कैसे हो , क्या कर रहे हो , खाना खा लिया या नहीं , पढने में क्या पसंद है ,.... फिक्शन या पोएट्री
.....और फिर ... मयंक भी ऋचा को ... दिन में १० - १० बार फ़ोन करता ..... और अंत में वही सब बातें ... घुमा फिर कर .... ऋचा से ... लव यू , लव यू बुलवा लेना .... ..................
फिर वही एक दो दिन में कोई और नयी दोस्ती की गुजारिश ... वही फ़ोन नंबर लेना और धीरे धीरे वही सब बातें ........... और एक दिन ......
हेलो ...आर यू ऋचा स्पीकिंग ...
जी येस्स. ... लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं .....
ऋचा .... ये अकाउंट नंबर है ... इसमें आपको एक लाख रुपये जमा करने है ....
व्हाट ..... लेकिन क्यों ... ...
आप धंधा करती है .... आपके कितने लडको से गलत ताल्लुक है ..... आअप या तो ये पैसा जमा करवा दे या कल सुबहो आपको पता चल जायेगा .....
ऋचा ने दर के मारे फ़ोन काट दिया ..... सुबहो के इन्तिज़ार में पूरी रात आँखों में काटी .... करीब ... ९ बजे एक फ़ोन आया ...कैसी हो मैडम .... अपने अमाउंट नहीं डाला ....
जी देखिये मेरी कोई गलती नहीं , और न ही मेरा किसी से कोई ऐसा वैसा रिलेशन है .... और ... न ही मेरे पास इतना बड़ा अमाउंट है .....
हमें नहीं पता .... ठीक है तो फिर अपना फेसबुक ओपन करो और देखो आज की तजा खबर
व्हाट ..... व्हाट इस थिस ........... दिस इस फ्रॉड ..... बोगस .... इ कानन'ट बिलीव एट ....
फेसबुक पर ऋचा की आवाज़ वाले ... कुछ ऐसे पिक्स थे .... जो ट्रिक फोटोग्राफी से बनाये गए थे ...... ऋचा की आवाज ... ऋचा का फोटो .... पोर्न साईट पर .... ऋचा को कुछ नहीं सुझा ... हाथ पैर सुन्न हो गए , दिमाग ने कहा अब तुम कहीं की नहीं .... रही पूरी दुनिया ने इसे देखा है .... सुना है ... हाँ मेरी ही आवाज है ये .... और ऋचा को .... चक्कर आ गया ..... वहीँ धम्म से गिर पड़ी .... ... आवाज सुन माँ ने कमरे में झाँक कर देखा ... ऋचा बच्चे क्या हुआ .... क्या हुआ गुडिया .... उठ तो .... उठ ... अरे कोई पानी लाओ देखो तो रिची को क्या हो गया है ........ माँ ... की ममता इतनी तड़प उठी .... की ऋचा कैसे न उठती ... ऋचा ने आँखे खोली .... और खुद को माँ की गोद में देख ... फुट फुट कर रोने लंगी ... भैया अपने दोस्त के साथ बातें कर रहे थे ... वो भी कमरे में आ गए .... सारा मंजर देखा ... क्या हुआ मेरी गुडिया सी बहन को ..... भैया मुझे बचाओ ... मैंने कुछ नहीं किया ... कुछ नहीं किया ... मैं ऐसी नहीं हु ....
इतनी देर में भैया के दोस्त ने ...सामने स्क्रीन पर .... सब कुछ देखा पढ़ा ... फ़ोन चेक किया ... ..... ओह तो ये है फसाद
... हे .... राकेश देख तो यार ...... ये क्लिपिंग देख ....
ओह .... अरे ऋचा .... कंप्यूटर इंजिनियर की बहन हो कर भी इतना भी नहीं समझती के तुम्हारे पेरेंट्स ये सब नॉन सेन्स से डगमग होने वाले नहीं .... बस तुम्हारी ... छोटी सी मिस्टेक थी की तुम उनकी इमोशनल ब्लाच्क्मैलिंग की शिकार हो गयी और दूसरी गलती .... अनजान इंसान को अपना नंबर दे दिया .....
भूल जाओ ... इस बकवास को हम देख लेंगे ... तुम बे फ़िक्र रहो ... मुझे तुम पर पूरा विश्वास है .... पूरा दिन घर में रहती हो , अपने अदब से जाना , अदब से आना है तुम्हारा ... तुम्हे बिलकुल दुखी नहीं होना ब्लकि अपनी दोस्तों को भी कहो की इन्टरनेट के इस ज़माने में .... ऐसी बातो के कोई मायने नहीं .... अपने पर विश्वास रखो और अनजान लोगो से अपना फ़ोन नंबर शेयर नहीं किया करो ....
अगले दिन .... भाई ने सारे फोन न . .... की ... पुलिस आईटी क्राइम सेल में शिकायत दर्ज करवाई तो पता चला की ये लोग भोले भले लोगो को यु ही लूट ते है ... पुलिस ने ट्रेस कर ... दबिश दी ... तो पता चला की ...... एक शख्स ... अलग अलग नम्बरों से ऋचा को बेवकूफ बना लूटने की फिराक में था ...... मगर ... भाई की हिम्मत और समझदारी ने ऋचा को बर्बाद होने से बचा लिया था। घर पहुच कर ... जल्दी से स्टेटस अपडेट किया ...... हे फ्रेंड्स ............................
~अनीता राठी ©
ब्लॉग लिंक
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
24 August 2013
कहाँ जाना है मुझे ?
दिन चढ़ने के साथ ही
दिन ढलने के साथ ही
चारदीवारी के बाहर
कभी चारदीवारी के अंदर
ढूँढता हूँ एक मुकाम
कहाँ जाना है मुझे
ऊंचे पहाड़ों की
मुश्किल चढ़ाइयां चढ़ते हुए
पहुँच कर ऊपर
फिर नीचे उतरते हुए
चार राहें हैं सामने
कहाँ जाना है मुझे
वक़्त यूं तो सगा
किसी का भी नहीं होता
अक्सर उसने दिया है
मुझको ही धोखा
धीमा चलना न
तेज़ भागना है मुझे
कहाँ जाना है मुझे ?
~यशवन्त माथुर©
दिन ढलने के साथ ही
चारदीवारी के बाहर
कभी चारदीवारी के अंदर
ढूँढता हूँ एक मुकाम
कहाँ जाना है मुझे
ऊंचे पहाड़ों की
मुश्किल चढ़ाइयां चढ़ते हुए
पहुँच कर ऊपर
फिर नीचे उतरते हुए
चार राहें हैं सामने
कहाँ जाना है मुझे
वक़्त यूं तो सगा
किसी का भी नहीं होता
अक्सर उसने दिया है
मुझको ही धोखा
धीमा चलना न
तेज़ भागना है मुझे
कहाँ जाना है मुझे ?
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
21 August 2013
डॉलर और रुपये की असली कहानी....
यह पोस्ट आज फेसबुक पर बहुत शेयर की जा रही है। www.allindiadaily.com पर प्रकाशित जानकारी वर्धक इस पोस्ट को संकलित करने के लिहाज से इस ब्लॉग पर साभार प्रस्तुत कर रहा हूँ।
An Advice to all who are worrying about fall of Indian Rupee
Throughout the country please stop using cars except for emergency for only seven days (Just 7 days)
Definitely Dollar rate will come down. This is true. The value to dollar is given by petrol only.This is called Derivative Trading. America has stopped valuing its Dollar with Gold 70 years ago.
Americans understood that Petrol is equally valuable as Gold so they made Agreement with all the Middle East countries to sell petrol in Dollars only. That is why Americans print their Dollar as legal tender for debts. This mean if you don't like their American Dollar and go to their Governor and ask for repayment in form of Gold,as in India they won't give you Gold.
You observe Indian Rupee, " I promise to pay the bearer..." is clearly printed along with the signature of Reserve Bank Governor. This mean, if you don't like Indian Rupee and ask for repayment,Reserve Bank of India will pay you back an equal value of gold.(Actually there may be minor differences in the Transaction dealing rules, but for easy comprehension I am explaining this)
Let us see an example. Indian petroleum minister goes to Middle East country to purchase petrol, the Middle East petrol bunk people will say that liter petrol is one Dollar.
But Indians won't have dollars. They have Indian Rupees. So what to do now? So That Indian Minister will ask America to give Dollars. American Federal Reserve will give us dollars by taking Indian Rupees ( according to exchange rate ) , print Dollars on it and give it to the Indian Minister. Like this we get dollars , pay it to petrol bunks and buy petrol.
But there is a something wrong here. If you change your mind and want to give back the Dollars to America we can't demand them to pay Gold in return for the Dollars. They will say " Have we promised to return something back to you? Haven't you checked the Dollar ? We clearly printed on the Dollar that it is Debt"
So, Americans don't need any Gold with them to print Dollars.
But what will Americans give to the Middle East countries for selling petrol in Dollars only?
Middle East kings pay rent to America for protecting their kings and heirs. Similarly they are still paying back the Debt to America for constructing Roads and Buildings in their countries.
At present the problem of India is the result of buying those American Dollars. So if we reduce the consumption of petrol and cars, Dollar will come down
The Above Details have been provided originally in Telugu Language by Madhava Turumella and were translated to English by Radhika Gr.
स्रोत (साभार) http://www.allindiadaily.com/2013/08/real-story-of-american-dollar-vs-Indian-Rupee.html?m=1
एवं-Raj.Rocker की फेसबुक वॉल
~यशवन्त माथुर
Throughout the country please stop using cars except for emergency for only seven days (Just 7 days)
Definitely Dollar rate will come down. This is true. The value to dollar is given by petrol only.This is called Derivative Trading. America has stopped valuing its Dollar with Gold 70 years ago.
Americans understood that Petrol is equally valuable as Gold so they made Agreement with all the Middle East countries to sell petrol in Dollars only. That is why Americans print their Dollar as legal tender for debts. This mean if you don't like their American Dollar and go to their Governor and ask for repayment in form of Gold,as in India they won't give you Gold.
You observe Indian Rupee, " I promise to pay the bearer..." is clearly printed along with the signature of Reserve Bank Governor. This mean, if you don't like Indian Rupee and ask for repayment,Reserve Bank of India will pay you back an equal value of gold.(Actually there may be minor differences in the Transaction dealing rules, but for easy comprehension I am explaining this)
Let us see an example. Indian petroleum minister goes to Middle East country to purchase petrol, the Middle East petrol bunk people will say that liter petrol is one Dollar.
But Indians won't have dollars. They have Indian Rupees. So what to do now? So That Indian Minister will ask America to give Dollars. American Federal Reserve will give us dollars by taking Indian Rupees ( according to exchange rate ) , print Dollars on it and give it to the Indian Minister. Like this we get dollars , pay it to petrol bunks and buy petrol.
But there is a something wrong here. If you change your mind and want to give back the Dollars to America we can't demand them to pay Gold in return for the Dollars. They will say " Have we promised to return something back to you? Haven't you checked the Dollar ? We clearly printed on the Dollar that it is Debt"
So, Americans don't need any Gold with them to print Dollars.
But what will Americans give to the Middle East countries for selling petrol in Dollars only?
Middle East kings pay rent to America for protecting their kings and heirs. Similarly they are still paying back the Debt to America for constructing Roads and Buildings in their countries.
At present the problem of India is the result of buying those American Dollars. So if we reduce the consumption of petrol and cars, Dollar will come down
The Above Details have been provided originally in Telugu Language by Madhava Turumella and were translated to English by Radhika Gr.
स्रोत (साभार) http://www.allindiadaily.com/2013/08/real-story-of-american-dollar-vs-Indian-Rupee.html?m=1
एवं-Raj.Rocker की फेसबुक वॉल
~यशवन्त माथुर
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
19 August 2013
पटरी पर जिंदगी
(चित्र साभार-अविनाश कुमार चंचल जी ) |
भागती है
अपनी पटरी पर
सरपट ये जिंदगी
देखती है
और सहेजती है
दौड़ लगाती
धरती और पेड़ों को
ऊंचे पुलों को
बहती-सूखी नदियों को
चलती बसों-ट्रकों
आते जाते लोगों
और सुनसान सड़कों को
जो दिन मे गुलज़ार रहती हैं
अमीरों को मस्ती में
और कराहती हैं हर रात को
हरे ज़ख़्मों पर छिटके
नमक की टीस से ।
(2)
यादों की भीड़ से
ठसाठस भरी
यह जिंदगी की रेल
आने वाले मुकामों पर
थोड़ा ठहर कर
कभी खुद से बातें करती है
कभी औरों की बातें सुनती है
न जाने किस तरह
बुनते हुए चित्र
हर आने वाले पल का
और चलती रहती है
अपनी पटरी पर
सदा की तरह।
~यशवन्त माथुर©
(पत्रकार अविनाश कुमार चंचल जी के फेसबुक चित्र से प्रेरित)
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
17 August 2013
वह रास्ता अब बंद है
पिछली बार
जब गुज़रा था उस रास्ते से
उस से हो कर गुजरती थी
एक लंबी चौड़ी सड़क
जिसके दोनों किनारे
लगे थे
नीम और बरगद
आते जाते
कभी कभी
रुक जाया करता था
पाने को छांव
या कभी
बचने को
बरसात से
आज फिर चाहा
उसी रास्ते से
अपनी मंज़िल को जाना
पर जा नहीं सका
वह रास्ता अब बंद है
और उसकी जगह मौजूद है
बहुमंज़िला इमारत
जिसके भीतर
हर दिन होता है
ईमान का
मोल तोल।
~यशवन्त माथुर©
जब गुज़रा था उस रास्ते से
उस से हो कर गुजरती थी
एक लंबी चौड़ी सड़क
जिसके दोनों किनारे
लगे थे
नीम और बरगद
आते जाते
कभी कभी
रुक जाया करता था
पाने को छांव
या कभी
बचने को
बरसात से
आज फिर चाहा
उसी रास्ते से
अपनी मंज़िल को जाना
पर जा नहीं सका
वह रास्ता अब बंद है
और उसकी जगह मौजूद है
बहुमंज़िला इमारत
जिसके भीतर
हर दिन होता है
ईमान का
मोल तोल।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
15 August 2013
स्वतन्त्रता दिवस पर
सच बोलो तो जेल मिलेगी
झूठ बोलो तो आज़ादी
ईमानदारी की ऐसी तैसी
बेईमान काटते हैं चाँदी
कटोरा हाथ मे लिये फिरता बचपन
लोट लगाता सड़कों पर
जब भी देखता चमक दमक
तब रोता अपनी किस्मत पर
आती जाती हर नारी को
घूरती नज़रें खा जाने को
दुर्योधन सब बने घूमते
नहीं कृष्ण लाज बचाने को
फुटपाथों पर जिंदगी मिलती
कूड़े के ढेर पर आज़ादी
जन गण मन की इसी धुन पर
कहीं विलासिता कहीं बर्बादी
फिर भी आज है जश्न
अरे देखो नयी गुलामी का
जो पाया सब खो दिया
मोल न समझा कुर्बानी का।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
09 August 2013
रास्ता ही मंज़िल है
आदरणीया अनुपमा पाठक जी की आज की पोस्ट के शीर्षक से प्रेरित पंक्तियाँ
रास्ता ही मंज़िल है
और हर मंज़िल
एक रास्ता है
नज़रों से ओझल
खुशी के फूलों से आती
मन भाती खुशबू को
ढूंढ कर
मन के किसी कोने मे
सहेज लेने की
बीते कल के सपनों के
आज में बदलने की
कुछ पूर्व निश्चित है
कुछ अनिश्चित है
कभी दोराहे,तिराहे
और चौराहों को
हम पहचानते हैं
कभी अनजान रास्ते भी
हमीं को जानते हैं
कभी रास्तों पर
चलते चलते
अपने पड़ाव
पर पहुँचने की
जल्दी होती है
कभी मन भटका कर
अनजान मंज़िल
इंतज़ार कर रही होती है
वक़्त की तेज़ी के साथ
पल पल गुजरते
नए रास्ते
काँटों से सजे
कभी फूलों से भरे
कुछ सीख कर
समझ कर
जीवन के भंवर में फँसकर
सर उठाकर
फिर निकलना ही
इसका हासिल है
हर रास्ता ही मंज़िल है ।
~यशवन्त माथुर©
रास्ता ही मंज़िल है
और हर मंज़िल
एक रास्ता है
नज़रों से ओझल
खुशी के फूलों से आती
मन भाती खुशबू को
ढूंढ कर
मन के किसी कोने मे
सहेज लेने की
बीते कल के सपनों के
आज में बदलने की
कुछ पूर्व निश्चित है
कुछ अनिश्चित है
कभी दोराहे,तिराहे
और चौराहों को
हम पहचानते हैं
कभी अनजान रास्ते भी
हमीं को जानते हैं
कभी रास्तों पर
चलते चलते
अपने पड़ाव
पर पहुँचने की
जल्दी होती है
कभी मन भटका कर
अनजान मंज़िल
इंतज़ार कर रही होती है
वक़्त की तेज़ी के साथ
पल पल गुजरते
नए रास्ते
काँटों से सजे
कभी फूलों से भरे
कुछ सीख कर
समझ कर
जीवन के भंवर में फँसकर
सर उठाकर
फिर निकलना ही
इसका हासिल है
हर रास्ता ही मंज़िल है ।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
08 August 2013
नहीं आता
सोच सोच कर सोच समझ कर
कुछ कहना मुझ को नहीं आता
तुक सहित या तुक रहित पर
बंधना मुझको नहीं आता
ऐसा ही नीरस हूँ तब से
जब से होश संभाला है
दुनियावी चलचित्र में जब से
अपना चरित्र खंगाला है
कठपुतली हूँ बंधा डोर से
नाच नचाना नहीं आता
सीधे सीधे कहता मन की
हर बात घुमाना नहीं आता ।
~यशवन्त माथुर©
कुछ कहना मुझ को नहीं आता
तुक सहित या तुक रहित पर
बंधना मुझको नहीं आता
ऐसा ही नीरस हूँ तब से
जब से होश संभाला है
दुनियावी चलचित्र में जब से
अपना चरित्र खंगाला है
कठपुतली हूँ बंधा डोर से
नाच नचाना नहीं आता
सीधे सीधे कहता मन की
हर बात घुमाना नहीं आता ।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
04 August 2013
अर्थ के अर्थों में..........
अर्थ के अर्थों में, उलझा हुआ है आदमी
निरर्थ होकर अर्थ पर, सोया हुआ है आदमी
जाने किन स्वप्नों में, व्यर्थ खोया हुआ है आदमी
अनर्थ कर रहा अर्थ,अर्थ पर लोटता हुआ आदमी।
[अर्थ->मतलब ,धन और धरती (earth) के संदर्भ में]
~यशवन्त माथुर©
निरर्थ होकर अर्थ पर, सोया हुआ है आदमी
जाने किन स्वप्नों में, व्यर्थ खोया हुआ है आदमी
अनर्थ कर रहा अर्थ,अर्थ पर लोटता हुआ आदमी।
[अर्थ->मतलब ,धन और धरती (earth) के संदर्भ में]
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
03 August 2013
उजली राहों के किनारे पर ......
उजली राहों के किनारे पर
अँधेरों की उस बस्ती में
घुटनों चलती है जिंदगी
मुस्कुराते हुए
मैं हर रोज़ गुज़रता हूँ
भलमनसाहत का लबादा ओढ़ कर
डालता हूँ एक नज़र
मुंह छुपाते हुए
कोई देख न ले मुझे
उन कच्चे ढलानों पर
उतर कर जाते हुए
लौट कर आते हुए
उजली राहों के किनारे पर
अँधेरों की उस बस्ती में
प्यास से जूझती है जिंदगी
भूख बिताते हुए।
~यशवन्त माथुर©
अँधेरों की उस बस्ती में
घुटनों चलती है जिंदगी
मुस्कुराते हुए
मैं हर रोज़ गुज़रता हूँ
भलमनसाहत का लबादा ओढ़ कर
डालता हूँ एक नज़र
मुंह छुपाते हुए
कोई देख न ले मुझे
उन कच्चे ढलानों पर
उतर कर जाते हुए
लौट कर आते हुए
उजली राहों के किनारे पर
अँधेरों की उस बस्ती में
प्यास से जूझती है जिंदगी
भूख बिताते हुए।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
02 August 2013
सीमित शब्द और मेरे ख्याल
मेरे ख्याल
घूमते हैं
कुछ गिने चुने
कुछ खास
शब्दों के इर्द गिर्द ...
जिन के चारों ओर
परिक्रमा करता है
मेरा मन
कभी समझते हुए
किसी तस्वीर की
मौन भाषा ...
कभी देखते हुए
बहते पानी की
चहकती लहरें....
कभी देख कर
अधखिली कलियाँ ...
कभी झूमते हुए
खिले हुए फूलों की
मादक खुशबू में ...
कभी निहारते हुए
उड़ती चिड़ियाँ
भौंरे और तितलियाँ
कभी सुनते हुए
मन पसंद संगीत ...
मेरे ख्याल
अपने सीमित शब्दकोश से
चुन लेते हैं
कहने लायक कुछ शब्द
और कोशिश करते हैं
करने की
कुछ बातें खुद से।
~यशवन्त माथुर©
घूमते हैं
कुछ गिने चुने
कुछ खास
शब्दों के इर्द गिर्द ...
जिन के चारों ओर
परिक्रमा करता है
मेरा मन
कभी समझते हुए
किसी तस्वीर की
मौन भाषा ...
कभी देखते हुए
बहते पानी की
चहकती लहरें....
कभी देख कर
अधखिली कलियाँ ...
कभी झूमते हुए
खिले हुए फूलों की
मादक खुशबू में ...
कभी निहारते हुए
उड़ती चिड़ियाँ
भौंरे और तितलियाँ
कभी सुनते हुए
मन पसंद संगीत ...
मेरे ख्याल
अपने सीमित शब्दकोश से
चुन लेते हैं
कहने लायक कुछ शब्द
और कोशिश करते हैं
करने की
कुछ बातें खुद से।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
01 August 2013
छुपा हुआ सच....
30 जुलाई को यह चित्र एक दोस्त ने फेसबुक पर टैग
किया था। यह पंक्तियाँ इसी चित्र को देख कर अभिव्यक्त हुई हैं-
डायरी मे लिखी
यादों के
उसी एक पन्ने पर
बार बार ठहर जाती है नज़र
जिस पर रच डाला है
मैंने
जीवन का
अनकहा सच
सच ...
सुना नहीं सकता किसी को
बना कर कोई कविता
कोई कहानी
सच ....
जिसे दे नहीं सकता शब्द
मगर बना सकता हूँ
खुद के समझने लायक
आड़ी तिरछी लकीरें
सच...
जिसे छुपा तो सकता हूँ
नये
अगले
सफ़ेद और कोरे
पन्ने के मुखौटे के
भीतर
ताकि मैं वही रहूँ
जो मैं हूँ
आज कल और
हमेशा
दुनिया की नज़रों में।
~यशवन्त माथुर©
किया था। यह पंक्तियाँ इसी चित्र को देख कर अभिव्यक्त हुई हैं-
डायरी मे लिखी
यादों के
उसी एक पन्ने पर
बार बार ठहर जाती है नज़र
जिस पर रच डाला है
मैंने
जीवन का
अनकहा सच
सच ...
सुना नहीं सकता किसी को
बना कर कोई कविता
कोई कहानी
सच ....
जिसे दे नहीं सकता शब्द
मगर बना सकता हूँ
खुद के समझने लायक
आड़ी तिरछी लकीरें
सच...
जिसे छुपा तो सकता हूँ
नये
अगले
सफ़ेद और कोरे
पन्ने के मुखौटे के
भीतर
ताकि मैं वही रहूँ
जो मैं हूँ
आज कल और
हमेशा
दुनिया की नज़रों में।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
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