किया था। यह पंक्तियाँ इसी चित्र को देख कर अभिव्यक्त हुई हैं-
डायरी मे लिखी
यादों के
उसी एक पन्ने पर
बार बार ठहर जाती है नज़र
जिस पर रच डाला है
मैंने
जीवन का
अनकहा सच
सच ...
सुना नहीं सकता किसी को
बना कर कोई कविता
कोई कहानी
सच ....
जिसे दे नहीं सकता शब्द
मगर बना सकता हूँ
खुद के समझने लायक
आड़ी तिरछी लकीरें
सच...
जिसे छुपा तो सकता हूँ
नये
अगले
सफ़ेद और कोरे
पन्ने के मुखौटे के
भीतर
ताकि मैं वही रहूँ
जो मैं हूँ
आज कल और
हमेशा
दुनिया की नज़रों में।
~यशवन्त माथुर©
कभी न बदलेंगे हम!
ReplyDeletebhaut hi acchi...
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
गहरी बात कही....बहुत सुंदर
ReplyDeletesunder kavita
ReplyDeleteshubhkamnayen
rachana
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 03/08/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
सुन्दर रचना !!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसच कहा है सच सदा ही अनकहा रह जाता है
ReplyDeleteसच हो या झूठ लाख परतों के पीछे छुपा हो कभी न कभी सामने आ ही जाता है ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ....