03 August 2013

उजली राहों के किनारे पर ......

उजली राहों के किनारे पर
अँधेरों की उस बस्ती में
घुटनों चलती है जिंदगी
मुस्कुराते  हुए

मैं हर रोज़ गुज़रता हूँ
भलमनसाहत का लबादा ओढ़ कर 
डालता हूँ एक नज़र
मुंह छुपाते हुए 

कोई देख न ले मुझे
उन कच्चे ढलानों पर
उतर कर जाते हुए
लौट कर आते हुए

उजली राहों के किनारे पर
अँधेरों की उस बस्ती में
प्यास से जूझती है जिंदगी
भूख बिताते हुए। 

~यशवन्त माथुर©

8 comments:

  1. bahut gehri va sachchi baat kahi hai, sunder abhivyakti

    shubhkamnayen

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  2. हम सब यही करते हैं.....

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  3. बहुत सुंदर पोस्ट
    हार्दिक शुभकामनायें

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  4. तो रोज की बातें हैं कह पायें कि न कह पायें किन्तु आपने man ko टटोल दिया

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  5. बहुत ही सुन्दर लिख है आपने, मेरे ब्लॉग पर आकर हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद !

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  6. बहुत ही सुन्दर लिख है आपने, मेरे ब्लॉग पर आकर हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद !

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  7. उजली राहों का स्याह लिखती संवेदना!

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  8. Jaise Kanch ka saman the or gir gaye hum or khud banane fir gaye hum....

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