08 August 2013

नहीं आता

सोच सोच कर सोच समझ कर
कुछ कहना मुझ को नहीं आता
तुक सहित या तुक रहित पर
बंधना मुझको नहीं आता

ऐसा ही नीरस हूँ तब से
जब से होश संभाला है
दुनियावी चलचित्र में जब से
अपना चरित्र खंगाला है

कठपुतली हूँ बंधा डोर से
नाच नचाना नहीं आता
सीधे सीधे कहता मन की
हर बात घुमाना नहीं आता । 

~यशवन्त माथुर©

14 comments:

  1. कठपुतली हूँ बंधा डोर से
    नाच नचाना नहीं आता
    सीधे सीधे कहता मन की
    हर बात घूमना नहीं आता ।
    ऐसे रहना
    राजनीति-गहना
    क्या पहनना ....
    God Bless U

    ReplyDelete
  2. कठपुतली हूँ बंधा डोर से
    नाच नचाना नहीं आता
    सीधे सीधे कहता मन की
    हर बात घूमना नहीं आता । ...बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete
  3. अच्छा है...यही सादगी यही सच्चाई बनी रहे...

    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  4. आपकी सहृदयता और सरलता यूँ ही बनी रहे!
    ऐसा होना नीरस है तो हमें नीरस ही होना चाहिए:)

    ReplyDelete
  5. सादगी में जो आनंद और संतुष्टी है उसका कोई क्या मोल लगा सकता है
    शुभ-कामनायें

    ReplyDelete
  6. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 10/08/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    ReplyDelete
  7. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.......

    ReplyDelete
  8. सीधे सरल जीवन जीना ही बहुत कठिन है टेढ़ा तो कोई भी जी सकता है

    ReplyDelete
  9. वाह,क्या बात है

    ReplyDelete
  10. सीधे दिल से निकली हुई सही बातें जो सच्चे दिल की निशानी है

    ReplyDelete
  11. सोच सोच कर सोच समझ कर
    कुछ कहना मुझ को नहीं आता

    bahut khoob, sach hai sadgi mein jo khoobsurti hai vo kahin nahi

    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  12. सुंदर भाव !

    ReplyDelete
  13. बहुत सुंदर... इस सादगी के भी अपने मायने हैं

    ReplyDelete