सोच सोच कर सोच समझ कर
कुछ कहना मुझ को नहीं आता
तुक सहित या तुक रहित पर
बंधना मुझको नहीं आता
ऐसा ही नीरस हूँ तब से
जब से होश संभाला है
दुनियावी चलचित्र में जब से
अपना चरित्र खंगाला है
कठपुतली हूँ बंधा डोर से
नाच नचाना नहीं आता
सीधे सीधे कहता मन की
हर बात घुमाना नहीं आता ।
~यशवन्त माथुर©
कठपुतली हूँ बंधा डोर से
ReplyDeleteनाच नचाना नहीं आता
सीधे सीधे कहता मन की
हर बात घूमना नहीं आता ।
ऐसे रहना
राजनीति-गहना
क्या पहनना ....
God Bless U
कठपुतली हूँ बंधा डोर से
ReplyDeleteनाच नचाना नहीं आता
सीधे सीधे कहता मन की
हर बात घूमना नहीं आता । ...बहुत सुन्दर..
अच्छा है...यही सादगी यही सच्चाई बनी रहे...
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
आपकी सहृदयता और सरलता यूँ ही बनी रहे!
ReplyDeleteऐसा होना नीरस है तो हमें नीरस ही होना चाहिए:)
सादगी में जो आनंद और संतुष्टी है उसका कोई क्या मोल लगा सकता है
ReplyDeleteशुभ-कामनायें
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 10/08/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.......
सीधे सरल जीवन जीना ही बहुत कठिन है टेढ़ा तो कोई भी जी सकता है
ReplyDeleteवाह,क्या बात है
ReplyDeleteसीधे दिल से निकली हुई सही बातें जो सच्चे दिल की निशानी है
ReplyDeleteसोच सोच कर सोच समझ कर
ReplyDeleteकुछ कहना मुझ को नहीं आता
bahut khoob, sach hai sadgi mein jo khoobsurti hai vo kahin nahi
shubhkamnayen
सुंदर भाव !
ReplyDeleteबहुत सुंदर... इस सादगी के भी अपने मायने हैं
ReplyDeleteसपाटबयानी ही ठीक है
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