नहीं चाहता समझना
क्या है सच
और उसके पीछे का
मर्म
मैं खुश हूँ
खुद के ऊपर छाए
झूठ के आवरण के भीतर
जहां महफूज है
मेरा मन
टेक लगा कर
वर्तमान के सिरहाने पर।
~यशवन्त माथुर©
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God Bless U
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. यदि कोई झूठ के आवरण के नीचे, वर्तमान के सिरहाने पर सिर रख कर खुश हो तो ज़ाहिर है वह अपने अंतर्विरोधों से संतुष्ट है. ऐसी स्थिति से हम सभी ग़ुज़रते हैं.
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़.....
ReplyDeleteachhi kavita
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यशवंत जी
ReplyDeletelatest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
वर्तमान में रहना भी ज़रूरी है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव !
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