नज़रों के सामने
फैले हुए हैं
ढेर सारे विषय
कुछ आकार में बड़े
कुछ बहुत ही छोटे
कुछ समुंदर की
अंतहीन गहराई लिये
पहाड़ों की ऊंचाई लिये
कुछ
थोड़ा ही कुरेदने पर
मुट्ठी के भीतर
समा जाते हैं
कुछ
पल मे ही
उफनाने लगते हैं
सबके अपने शब्द हैं
अपनी भाषा है
अपना अलग व्याकरण है
और इन सबके सामने
कभी चौंकता
कभी ठिठकता
भ्रम में पड़ता
सोच में डूबा
निरीह सा 'मैं'
उलझा हूँ
किसे चुनूँ
किस पर लिखूँ ?
:)
~यशवन्त यश ©
सच मे बड़ी डांवाडोल सी मानसिक स्थिति हो जाति है लिखने से पहले ....
ReplyDeletevery nice to say but very difficukt to balance
ReplyDeleteशुभ संध्या
ReplyDeleteउलझन बड़ी चीज है
कुत्ती सी
जरा सा दुलारा
बस हो गया वो प्यारा
नहीं छोड़ती
पीछा वो नामुराद
उलझन...
सच में भाई
इशारों इशारों में
सब सुलझा दिया
बहरहाल...बधाइयां
नये तखल्लुस 'यश' अपनाने के लिये
सादर
भ्रम में पड़ता
ReplyDeleteसोच में डूबा
निरीह सा 'मैं'
उलझा हूँ
किसे चुनूँ
किस पर लिखूँ ?
bhavpoorn
चुनाव करते समय यही द्विधा रहती है !
ReplyDeleteआपकी लेखनी यूं ही उम्दा चलती रहे
ReplyDeleteतथास्तु
जो आपका मन कहे उसी पर लिखें..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteये भ्रह्म यूं ही रहता है .. लेखनी फिर भी चलती है ... अपना काम करती है ...
ReplyDeleteसच है ...
ReplyDeleteये द्वंद्व सबके लिए है.....
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