06 September 2013

जन्नत निकल पड़ी है,गबन दोज़ख का करने

निकल जाए जो साँस, तो मुर्दा बदन देख कर
ज़ख्मी रूह भी आएगी,जनाज़े का मंज़र देखने।
मैं इंतज़ार में हूँ,कफन कोई ला दे मुझको
चल दूंगा फिर खुद ही,खुद को दफन करने।
अब और नहीं चलना,इस राह ए जिंदगी पर
जन्नत निकल पड़ी है,गबन दोज़ख का करने।

  ~यशवन्त यश©

14 comments:

  1. मैं इंतज़ार में हूँ,कफन कोई ला दे मुझको
    चल दूंगा फिर खुद ही,खुद को दफन करने।
    bahut sundar bhavpoorn abhivyakti .

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  2. शुभप्रभात बेटे
    ये क्या है
    क्यूँ है

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    1. नमस्ते आंटी!
      ये कुछ पंक्तियाँ हैं।
      इसलिये हैं क्योंकि मेरे मन ने इन्हें लिखने को बोला।

      सादर

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  3. अब और नहीं चलना,इस राह ए जिंदगी पर
    ***
    कई बार ऐसा मेरे मन में भी आता है:(
    पर ज़िन्दगी है न, जी जानी चाहिए हर हाल में:)

    Well written!

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  4. पंक्तियाँ बहुत सुन्दर हैं..पर भाव तुम्हारे लायक नही.

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  5. सुन्दर ग़ज़ल

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  6. कुछ अधिक कडवी हैं पंक्तियाँ ..

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  8. ज़माने के सितम से हर के रूह जख्मी हो गए हैं.... फिर भी हमें जीना पड़ता है... बहुत अच्छा लिखा...

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  9. बहुत सुन्दर...

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  10. सुंदर भाव लिये रचना..

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