उसने देखे थे सपने
बाबुल के घर के बाहर की
एक नयी दुनिया के
जहां वह
और उसके
उन सपनों का
सजीला राजकुमार
खुशियों के आँगन में
रोज़ झूमते
नयी उमंगों की
अनगिनत लहरों पर
उन काल्पनिक
सपनों का
कटु यथार्थ
अब आने लगा था
उसके सामने
जब उतर कर
फूलों की पालकी से
उसने रखा
अपना पहला कदम
मौत के कुएं की
पहली मंज़िल पर
और एक दिन
थम ही गईं
उसकी
पल पल मुसकाने वाली सांसें.....
दहेज के कटोरे में भरा
मिट्टी के तेल
छ्लक ही गया
उसकी देह पर
और वह
हो गयी स्वाहा
पिछले नवरात्र की
अष्टमी के दिन।
~यशवन्त यश©
बाबुल के घर के बाहर की
एक नयी दुनिया के
जहां वह
और उसके
उन सपनों का
सजीला राजकुमार
खुशियों के आँगन में
रोज़ झूमते
नयी उमंगों की
अनगिनत लहरों पर
उन काल्पनिक
सपनों का
कटु यथार्थ
अब आने लगा था
उसके सामने
जब उतर कर
फूलों की पालकी से
उसने रखा
अपना पहला कदम
मौत के कुएं की
पहली मंज़िल पर
और एक दिन
थम ही गईं
उसकी
पल पल मुसकाने वाली सांसें.....
दहेज के कटोरे में भरा
मिट्टी के तेल
छ्लक ही गया
उसकी देह पर
और वह
हो गयी स्वाहा
पिछले नवरात्र की
अष्टमी के दिन।
~यशवन्त यश©
लेखनी रोंगटे खड़ी करने लगी है
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं कापने लगी है
दुखद है ... समाज कितना भी आधुनिक हो जाये, पर ये कुरीति ख़त्म ही नहीं होती..
ReplyDeleteदहेज के दानव को भी शक्ति की देवी बन कर नष्ट करना होगा..
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeletemarmik abhivyakti ..
ReplyDeleteहर वर्ष हम रावण क पुतला बना कर उसे जला देते हैं और तालियाँ बजा कर खुश होते हैं...सोचते है हमनें बुराइयों पर विजय पा लिया है सच तो ये है कि हम नतो अपनी बुराइयों का खात्मा कर सके और न ही अपने आस पास फैले अगल बगल में छुपे रावणों का ही संहार कर सके....फिर हर वर्ष एक पुतला जलाने से क्या होगा....?????
ReplyDeletesamaj ke dard ko bayan karti achhi rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen