हर रस्ते पर
हर चौराहे पर
हर आसान
और तीखे मोड़ पर
अक्सर देखता हूँ भीड़
भागते -दौड़ते
हाँफते -थकते
और आराम से चलते
इन्सानों की
जिसका हिस्सा
हुआ करता हूँ मैं भी।
इस भीड़ से
कानों को चुभती
चिल्ल पों से
मन होता है
कभी कभी
लौट जाने को
अपने आरंभ पर
लेकिन कैसे लौटूँ ?
मैं एक छोटी सी लहर हूँ
इन्सानों की भीड़ के
इस समुद्र की
जिसे नहीं आता
पीछे देखना
या ठहरना
कुछ पल को।
उसे तो बढ़ते चलना है
और खो जाना है
इस सैलाब में
किनारे की रेत पर
छोड़ कर
कुछ सीप
अपनी याद के ।
~यशवन्त यश©
हर चौराहे पर
हर आसान
और तीखे मोड़ पर
अक्सर देखता हूँ भीड़
भागते -दौड़ते
हाँफते -थकते
और आराम से चलते
इन्सानों की
जिसका हिस्सा
हुआ करता हूँ मैं भी।
इस भीड़ से
कानों को चुभती
चिल्ल पों से
मन होता है
कभी कभी
लौट जाने को
अपने आरंभ पर
लेकिन कैसे लौटूँ ?
मैं एक छोटी सी लहर हूँ
इन्सानों की भीड़ के
इस समुद्र की
जिसे नहीं आता
पीछे देखना
या ठहरना
कुछ पल को।
उसे तो बढ़ते चलना है
और खो जाना है
इस सैलाब में
किनारे की रेत पर
छोड़ कर
कुछ सीप
अपनी याद के ।
~यशवन्त यश©
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [21.10.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1405 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
दिल की सच्ची बात
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति
ye yaad hi hai jisne jivn ki dor ko tham kar pakda hua hai ....sundar abhiwayakti ....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteजीवन का एक रूप यह भी है … सुन्दर अभिव्यक्ति ... शुभकामनाएं
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteवाह .....जीवन से जुड़ी गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteये तो जीवन चक्र है जिससे सभी को गुज़ारना होता है ... गहन भावनाएं ..
ReplyDeleteविचारों की भीड़ भी कभी कभी आ जा जाती है ... मेरे भी ब्लॉग पर आये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeletebahut sunder likha hai, man ko bhaya
ReplyDeleteshubhkamnayen