20 October 2013

भीड़

हर रस्ते पर
हर चौराहे पर
हर आसान
और तीखे मोड़ पर
अक्सर देखता हूँ भीड़
भागते -दौड़ते
हाँफते -थकते
और आराम से चलते
इन्सानों की
जिसका हिस्सा
हुआ करता हूँ मैं भी।

इस भीड़ से
कानों को चुभती
चिल्ल पों से
मन होता है
कभी कभी
लौट जाने को
अपने आरंभ पर
लेकिन कैसे लौटूँ ?
मैं एक छोटी सी लहर हूँ
इन्सानों की भीड़ के
इस समुद्र की
जिसे नहीं आता
पीछे देखना
या ठहरना
कुछ पल को।

उसे तो बढ़ते चलना है
और खो जाना है
इस सैलाब में
किनारे की रेत पर
छोड़ कर
कुछ सीप
अपनी याद के ।  

~यशवन्त यश©

12 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [21.10.2013]
    चर्चामंच 1405 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |

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  2. दिल की सच्ची बात
    उम्दा अभिव्यक्ति

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  3. ye yaad hi hai jisne jivn ki dor ko tham kar pakda hua hai ....sundar abhiwayakti ....

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  4. भावपूर्ण रचना |

    मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"

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  5. बहुत सुन्दर..

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  6. जीवन का एक रूप यह भी है … सुन्दर अभिव्यक्ति ... शुभकामनाएं

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  7. वाह .....जीवन से जुड़ी गहरी अभिव्यक्ति

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  8. ये तो जीवन चक्र है जिससे सभी को गुज़ारना होता है ... गहन भावनाएं ..

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  9. विचारों की भीड़ भी कभी कभी आ जा जाती है ... मेरे भी ब्लॉग पर आये

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  10. बहुत सुन्दर रचना |

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  11. bahut sunder likha hai, man ko bhaya
    shubhkamnayen

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