मेरे घर के सामने है
एक बड़ा
खाली मैदान
जिसने देखा है
पीढ़ियों को
जन्मते गुजरते
जिसकी गोद में
खेले कूदे हैं
छोटे छोटे बच्चे
जो बना है गवाह
सावन के झूलों का
पेड़ों से झरते
गुलमोहर के फूलों का ।
वो मैदान
आज खुदने लगा है
आधार बनने को
ऊंचाई छूती
नयी एक नयी इमारत का
जिसकी ईंट ईंट पर
लगने वाला
नया रंग रोगन भी
भुला न पाएगा
बीते कल की
अमिट खुशबू को।
~यशवन्त यश©
एक बड़ा
खाली मैदान
जिसने देखा है
पीढ़ियों को
जन्मते गुजरते
जिसकी गोद में
खेले कूदे हैं
छोटे छोटे बच्चे
जो बना है गवाह
सावन के झूलों का
पेड़ों से झरते
गुलमोहर के फूलों का ।
वो मैदान
आज खुदने लगा है
आधार बनने को
ऊंचाई छूती
नयी एक नयी इमारत का
जिसकी ईंट ईंट पर
लगने वाला
नया रंग रोगन भी
भुला न पाएगा
बीते कल की
अमिट खुशबू को।
~यशवन्त यश©
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteआप की इस खूबसूरत रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
ReplyDeleteआप की ये सुंदर रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को कुछ पंखतियों के साथ ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक गयी है... आप का भी इस प्रसारण में स्वागत है...आना मत भूलना...
सूचनार्थ।
bhawmay ......prastuti ....
ReplyDeleteकुछ ऐसा ही मंजर हमारे यहाँ भी चल रहा है...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना...
सुंदर , सार्थक भाव
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति......
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति .... ज़मीं की कमी को इंगित करती .. मेरे ब्लॉग पर आप कल नहीं आ रहे यशवंत भाई
ReplyDeleteकड़वी सच्चाई ....
ReplyDeleteबदलते दौर में कम पैसे वालो को घर मिलने लगा है
लेकिन ....
कड़वे यथार्थ का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteकभी नहीं भूलती हैं उन जगहों से जुडी यादें …. भावपूर्ण अभिव्यक्ति
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