आदरणीय हनुमंत शर्मा जी ने इसे कल फेसबुक
पर पोस्ट किया था। इस बेहतरीन अभिव्यक्ति को इस ब्लॉग पर साभार प्रस्तुत
करने से मैं खुद को नहीं रोक पा रहा हूँ ।
साहब ,
नाम ज़रूरी ही तो अलमा कबूतरी कह लीजिये |
इस वक्त एक सद्यप्रसूता हूँ और आपकी पनाह में हूँ |
आदमी ने हमारे रहने लायक तो कोई जगह छोड़ी नहीं ,
पर आपकी बालकनी में कबाड़ देखा तो लगा मुझे मेरा ‘लेबर रूम’ मिल गया |
टब में लगी तुलसी की छाया में ,मैंने अपने नन्हे आगुन्तको के लिए घासपूस का बिछौना सजा लिया |
उस दोपहर छोटी बेबी पास ही खेल रही थी कि जैसे ही मैंने पहला अंडा गिराया , हैरान हो गयी कि टेनिस बाल कहाँ से आ गया ? दौड़कर माँ को बुलाया तब तक मेरा दूसरा अंडा भी आ चुका था |
मै आश्वस्त थी कि मै और मेरे अंडे सुरक्षित रहेंगे ..तब तक जब तक घर में जनानियाँ है..आखिर उनके भीतर भी तो एक माँ होती है छुपी हुई |
बस ज़रा डर बिल्ली का था तो वो भी जाता रहा क्योंकि मेरी रखवाली में दोनों बेबियाँ और मैडम जो थी..थी क्या हैं भी |
छोटी बेबी तो रात को भी नींद से जागकर देखती है ...और सुबह उठकर सबसे पहले मेरा हाल लेती है |
उसके संगी साथी झुण्ड बनाकर आते है मुझे देखने , कोई छूना चाहे तो बेबी डांट देती है |
उसे बेताबी है नन्हे चूजों को देखने की | पर अभी उन्हें बाहर आने में ३ हप्ते और लग सकते हैं |
अभी तो मै दिन रात अंडे सेंक रही हूँ |
आप जब ठंड से बचने के लिए अन्दर रजाई में दुबके होते है,मै बाहर अपने अंडो पर पंखों में हवा भरकर बैठी होती हूँ |अपनी गर्मी उन्हें देती हुई | अपने अंडो के लिए मै ही रजाई हूँ और मेरे लिए मेरे चूजों का सपना ही मेरी गर्मी है |
दिन चढ़े मेरा संगवारी भी आ जाता है ..फिर वह सेंकता है और मै दाना पानी के इंतजाम में जुट जाती हूँ | हम अनपढ़ होकर भी काम और गृहस्थी मिल बाँट कर चला लेते है | इसे लेकर हमारे बीच कोई थाना कचहरी नही हुई अब तक |
साहब , ..
कल जब चूजे निकल आयेंगे ...तब चिल्लपों .. आवा जाही ..खिलाना सिखाना ...बीट और गुटर गू ..सब बढ़ जायेगी ..और जब चूजे ठंड में ठिठुरते हुये रोकर आपकी नींद भी खराब कर दें तो शायद सुबह उठते ही आप हमें बालकनी से बेदखल करने का फैसला भी सुना दें ..
यदि ऐसा हो साहब ,
बस इतना याद रखियेगा कि हम आपके पुराने सेवक रहे हैं |
जब ना फोन थे ना मेल ...हम ही आपके हरकारे थे |
हमी जान जोखिम में रख पैरो में संदेश बांधकर जंग के मैदान में आते जाते थे |
हमी ने आपके मोहब्बत भरे पैगाम माशूका तक पहुँचाये |
आपके गीतों और ग़ज़ल का विषय बने |
आपके दिल बहलाने को पिंजरों में क़ैद हुये और स्वाद बहलाने को दस्तरखान पर परोसे भी गये |
तो साहब ..
याद करना और रहम करना ...
आप भी आल औलाद वाले हैं आपकी बच्चियों पर भी एक दिन यह दौर आना है |
दूसरो की मल्कियत पर कब्ज़ा जमाने की इंसानी फितरत हमने नहीं सीखी है ..
उधर बच्चे उड़े कि इधर आपकी बालकनी से हमे भी उड़ जाना है ..
और हम ही क्यों ?
एक दिन तो आपको भी सब ठाठ छोड़ छाड़ कर खाली हाथ जाना है ..
" कबीरा रहना नहीं देस बेगाना है .........."|||||
~हनुमंत शर्मा ©
साहब ,
नाम ज़रूरी ही तो अलमा कबूतरी कह लीजिये |
इस वक्त एक सद्यप्रसूता हूँ और आपकी पनाह में हूँ |
आदमी ने हमारे रहने लायक तो कोई जगह छोड़ी नहीं ,
पर आपकी बालकनी में कबाड़ देखा तो लगा मुझे मेरा ‘लेबर रूम’ मिल गया |
टब में लगी तुलसी की छाया में ,मैंने अपने नन्हे आगुन्तको के लिए घासपूस का बिछौना सजा लिया |
उस दोपहर छोटी बेबी पास ही खेल रही थी कि जैसे ही मैंने पहला अंडा गिराया , हैरान हो गयी कि टेनिस बाल कहाँ से आ गया ? दौड़कर माँ को बुलाया तब तक मेरा दूसरा अंडा भी आ चुका था |
मै आश्वस्त थी कि मै और मेरे अंडे सुरक्षित रहेंगे ..तब तक जब तक घर में जनानियाँ है..आखिर उनके भीतर भी तो एक माँ होती है छुपी हुई |
बस ज़रा डर बिल्ली का था तो वो भी जाता रहा क्योंकि मेरी रखवाली में दोनों बेबियाँ और मैडम जो थी..थी क्या हैं भी |
छोटी बेबी तो रात को भी नींद से जागकर देखती है ...और सुबह उठकर सबसे पहले मेरा हाल लेती है |
उसके संगी साथी झुण्ड बनाकर आते है मुझे देखने , कोई छूना चाहे तो बेबी डांट देती है |
उसे बेताबी है नन्हे चूजों को देखने की | पर अभी उन्हें बाहर आने में ३ हप्ते और लग सकते हैं |
अभी तो मै दिन रात अंडे सेंक रही हूँ |
आप जब ठंड से बचने के लिए अन्दर रजाई में दुबके होते है,मै बाहर अपने अंडो पर पंखों में हवा भरकर बैठी होती हूँ |अपनी गर्मी उन्हें देती हुई | अपने अंडो के लिए मै ही रजाई हूँ और मेरे लिए मेरे चूजों का सपना ही मेरी गर्मी है |
दिन चढ़े मेरा संगवारी भी आ जाता है ..फिर वह सेंकता है और मै दाना पानी के इंतजाम में जुट जाती हूँ | हम अनपढ़ होकर भी काम और गृहस्थी मिल बाँट कर चला लेते है | इसे लेकर हमारे बीच कोई थाना कचहरी नही हुई अब तक |
साहब , ..
कल जब चूजे निकल आयेंगे ...तब चिल्लपों .. आवा जाही ..खिलाना सिखाना ...बीट और गुटर गू ..सब बढ़ जायेगी ..और जब चूजे ठंड में ठिठुरते हुये रोकर आपकी नींद भी खराब कर दें तो शायद सुबह उठते ही आप हमें बालकनी से बेदखल करने का फैसला भी सुना दें ..
यदि ऐसा हो साहब ,
बस इतना याद रखियेगा कि हम आपके पुराने सेवक रहे हैं |
जब ना फोन थे ना मेल ...हम ही आपके हरकारे थे |
हमी जान जोखिम में रख पैरो में संदेश बांधकर जंग के मैदान में आते जाते थे |
हमी ने आपके मोहब्बत भरे पैगाम माशूका तक पहुँचाये |
आपके गीतों और ग़ज़ल का विषय बने |
आपके दिल बहलाने को पिंजरों में क़ैद हुये और स्वाद बहलाने को दस्तरखान पर परोसे भी गये |
तो साहब ..
याद करना और रहम करना ...
आप भी आल औलाद वाले हैं आपकी बच्चियों पर भी एक दिन यह दौर आना है |
दूसरो की मल्कियत पर कब्ज़ा जमाने की इंसानी फितरत हमने नहीं सीखी है ..
उधर बच्चे उड़े कि इधर आपकी बालकनी से हमे भी उड़ जाना है ..
और हम ही क्यों ?
एक दिन तो आपको भी सब ठाठ छोड़ छाड़ कर खाली हाथ जाना है ..
" कबीरा रहना नहीं देस बेगाना है .........."|||||
~हनुमंत शर्मा ©