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14 November 2013

उसका बाल दिवस ......?

उसने नहीं देखा
कभी मुस्कुराता चेहरा माँ का
देखी हैं
तो बस चिंता की कुछ लकीरें
जो हर सुबह
हर शाम
बिना हिले
जमी रहती हैं
अपनी जगह पर खड़ी
किसी मूरत की तरह ....
वह खुद भी नहीं मुस्कुराता
क्योंकि ज़ख़्मों
और खरोचों से भरी
उसकी पीठ
पाना चाहती है आराम....
लेकिन आराम हराम है
उसे जुटानी है
दो वक़्त की रोटी
जो ज़रूरी है
उसके लिये
बाल दिवस की छुट्टी से ज़्यादा!

~यशवन्त यश©

9 comments:

  1. शर पैने हो गए हैं
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. बाल मजदूरी का हर हालत में विरोध होना चाहिए

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  3. दुःख होता है देखकर ...एक ही पिता के बच्चों की तक़दीरें इतनी अलग कैसे हो गयीं...!!!

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  4. बाल मजदूरी अभिशाप है हमारे देश के लिए ....

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  5. बुरा लगता है.... हमारे देश में बच्चों की ये स्थिति देखकर

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  6. सही कहा बहुत से बचपन दो वक़्त की रोटी जुटाते ही बीत जाते हैं, उन्हें क्या पता ये बाल दिवस और उसकी छुट्टी … भावपूर्ण रचना

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  7. यही कड़वी सच्चाई है. अर्थपूर्ण रचना

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  8. मर्मस्पर्शी लिखा है .....

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