उसने नहीं देखा
कभी मुस्कुराता चेहरा माँ का
देखी हैं
तो बस चिंता की कुछ लकीरें
जो हर सुबह
हर शाम
बिना हिले
जमी रहती हैं
अपनी जगह पर खड़ी
किसी मूरत की तरह ....
वह खुद भी नहीं मुस्कुराता
क्योंकि ज़ख़्मों
और खरोचों से भरी
उसकी पीठ
पाना चाहती है आराम....
लेकिन आराम हराम है
उसे जुटानी है
दो वक़्त की रोटी
जो ज़रूरी है
उसके लिये
बाल दिवस की छुट्टी से ज़्यादा!
~यशवन्त यश©
कभी मुस्कुराता चेहरा माँ का
देखी हैं
तो बस चिंता की कुछ लकीरें
जो हर सुबह
हर शाम
बिना हिले
जमी रहती हैं
अपनी जगह पर खड़ी
किसी मूरत की तरह ....
वह खुद भी नहीं मुस्कुराता
क्योंकि ज़ख़्मों
और खरोचों से भरी
उसकी पीठ
पाना चाहती है आराम....
लेकिन आराम हराम है
उसे जुटानी है
दो वक़्त की रोटी
जो ज़रूरी है
उसके लिये
बाल दिवस की छुट्टी से ज़्यादा!
~यशवन्त यश©
शर पैने हो गए हैं
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
बाल मजदूरी का हर हालत में विरोध होना चाहिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही
दुःख होता है देखकर ...एक ही पिता के बच्चों की तक़दीरें इतनी अलग कैसे हो गयीं...!!!
ReplyDeleteबाल मजदूरी अभिशाप है हमारे देश के लिए ....
ReplyDeleteबुरा लगता है.... हमारे देश में बच्चों की ये स्थिति देखकर
ReplyDeleteसही कहा बहुत से बचपन दो वक़्त की रोटी जुटाते ही बीत जाते हैं, उन्हें क्या पता ये बाल दिवस और उसकी छुट्टी … भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteयही कड़वी सच्चाई है. अर्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी लिखा है .....
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