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20 November 2013

श्री तेंदुलकराय नम: !

बहुत गहरी नींद में अचानक उपजी इन पंक्तियों को रात 1:30 से 02:15 तक मन से कागज़ पर उतारता चला गया। सचिन साहब से अग्रिम माफी के साथ अब इस सुबह अपने ब्लॉग पर भी सहेज ले रहा हूँ-

भारत रतन ! भारत रतन !
सोना कहाँ,चाँदी कहाँ 
गरीब के बच्चे को रोज़ ही 
रोना यहाँ,दूध पीना कहाँ ?
श्री तेंदुलकराय नम: !

महंगाई यहाँ,मंदी यहाँ 
गर्मी यहाँ,ठंडी यहाँ 
उन्हें क्या पता ऐ सी में 
ऐसी तेसी होती कहाँ ?
श्री तेंदुलकराय नमः !

मच्छर यहाँ,मक्खी यहाँ 
मोटी रोटी पचती यहाँ 
उनका गैस का चूल्हा है 
मिट्टी लिपी भट्टी कहाँ ?
श्री तेंदुलकराय नमः !

माँस नहीं,हड्डी यहाँ 
खोखो यहाँ,कबड्डी यहाँ 
उनकी तो कोका कोला है 
चुल्लू कहाँ,टुल्लू कहाँ ?
श्री तेंदुलकराय नमः !

सूखा यहाँ,बारिश यहाँ 
रोज़ मरते लावारिस यहाँ 
उनकी वसीयत में अरबों हैं 
सैकड़ा -हज़ार क्या करते वहाँ ?
श्री तेंदुलकराय नमः!

गिल्ली यहाँ,डंडा यहाँ 
साँसों का हर हथकंडा यहाँ 
उनकी किस्मत में 'किरकट' है 
आसमान वहाँ,धरती कहाँ ?
श्री तेंदुलकराय नमः !

भारत रतन ! भारत रतन !
हीरा कहाँ,मोती कहाँ 
यह तो बस अपनी भक्ति है 
भजन नहीं,आरती कहाँ ?
श्री तेंदुलकराय नमः !

~यशवन्त यश©

 

10 comments:

  1. सुखा यहाँ बारिश यहाँ
    रोज मरते लावारिस यहाँ .......बिल्कुल सही .
    बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति... !!

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  2. पोल-खोल.. सच का आईना दिखाती कविता।

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  3. आपने बहुत सुन्दर ढंग से रखा है समसामयिक भारतीय पृष्ठभूमि को

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  4. बहुत ही सुन्दर शब्द दिए हैं आपने अपनी वेदना को.

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  5. दिल से निकली भावयुक्त पंक्तियाँ....सचिन फिर भी सचिन है...

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  6. pahli baat toh blog ki template aapne fir badal di jo simple hote hue bhi achhi lag rahi hai .. khaastaur par aapke ye do photographs.

    kavita neend mein bhi bilkul sateek baat kah gai hai, pichhle kuchh din se hamaara desh tendulkarmay hi ho rakha hai akhbaar walon ne poore k poore page dedicate kar diye channle wale alag coverage de rahe hain par bharat mata k aur bhi kai "laal" aur "ratn" hain ye ham hamesha se hi bhoole hue hain aur lagta nahi ki kabhi yaad karne ki jahmat karenge.

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  7. बहुत खूब ... व्यंग के साथ साथ सच को छूते हुए ...
    लाजवाब ...

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  8. bahut achha vyang likha hai.

    shubhkamnayen

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  9. यह सब देखने की किसी फुर्सत ...यह बड़ी बिडम्बना है ..
    सटीक रचना ..
    ..

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