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07 November 2013

ये बूंदें



तन नहीं मन भिगोती हैं,
देखो बरसती ये बूंदें
मुस्कुरा कर गिरती हैं,
कहीं खो जाती हैं ये बूंदें

हर बार सोचता हूँ सहेज लूँगा
कुछ बूंदें मन की प्याली में
चूक जाता हूँ फिर भी
न जाने किस बेख्याली में

आना जाना जिंदगी का
सिखा देती हैं ये बूंदें
गम ओ खुशी की बारिश बन
कभी हँसा देती हैं ये बूंदें ।

~यशवन्त यश©

14 comments:

  1. वाह यशवंत जी, बहुत सुन्दर....

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  2. सकारात्मक विचारों का आलोड़न ...... शुभकामनाये !!!

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  3. खुबसूरत प्रस्तुती....

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  4. photo courtesy Google ki hai .. varna google wale mujhe aur aapko dono ko sue kar dete hain. kavita toh badiya likhi hai .. short n sweet

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  5. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08-11-2013) को "चर्चा मंचः अंक -1423" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  6. अमृत सी ये बूँदे......भिगोती रहें सदा !!
    सस्नेह
    अनु

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  7. बहुत ही सुन्दर और प्यारी रचना...
    :-)

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  8. बून्द बून्द झरते भाव

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 09/11/2013 को एक गृहिणी जब कलम उठाती है ...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 042 )
    - पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  11. जिंदगी जीना सीखा देती ये बुँदे ......
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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