देखो न
दिसंबर भी आ गया
देखते देखते
साल बीतने को आ गया
क्या पाया
क्या खोया
कितना हँसा
कितना रोया
कब तक जागा
कब तक सोया
कितना झेला
कितना ढोया
कुछ ही पन्ने बचे डायरी के
जिसमे इतिहास का अक्षर बोया
यह अंत है नया दौर फिर
नए ठौर का बौर आ गया
देखो न
दिसंबर भी आ गया ।
~यशवन्त यश©
दिसंबर भी आ गया
देखते देखते
साल बीतने को आ गया
क्या पाया
क्या खोया
कितना हँसा
कितना रोया
कब तक जागा
कब तक सोया
कितना झेला
कितना ढोया
कुछ ही पन्ने बचे डायरी के
जिसमे इतिहास का अक्षर बोया
यह अंत है नया दौर फिर
नए ठौर का बौर आ गया
देखो न
दिसंबर भी आ गया ।
~यशवन्त यश©
आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 02/12/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
ReplyDeleteसूचनार्थ।
एक मंच[mailing list] के बारे में---
अपनी किसी भी ईमेल द्वारा ekmanch+subscribe@googlegroups.com
पर मेल भेजकर जुड़ जाईये आप हिंदी प्रेमियों के एकमंच से।हमारी मातृभाषा सरल , सरस ,प्रभावपूर्ण , प्रखर और लोकप्रिय है पर विडंबना तो देखिये अपनों की उपेक्षा का दंश झेल रही है। ये गंभीर प्रश्न और चिंता का विषय है अतः गहन चिंतन की आवश्यकता है। इसके लिए एक मन, एक भाव और एक मंच हो, जहाँ गोष्ठिया , वार्तालाप और सार्थक विचार विमर्श से निश्चित रूप से सकारात्मक समाधान निकलेगे इसी उदेश्य की पूर्ति के लिये मैंने एकमंच नाम से ये mailing list का आरंभ किया है। आज हिंदी को इंटरनेट पर बढावा देने के लिये एक संयुक्त प्रयास की जरूरत है, सभी मिलकर हिंदी को साथ ले जायेंगे इस विचार से हिंदी भाषी तथा हिंदी से प्यार करने वाले सभी लोगों की ज़रूरतों पूरा करने के लिये हिंदी भाषा , साहित्य, चर्चा तथा काव्य आदी को समर्पित ये संयुक्त मंच है। देश का हित हिंदी के उत्थान से जुड़ा है , यह एक शाश्वत सत्य है इस मंच का आरंभ निश्चित रूप से व्यवस्थित और ईमानदारी पूर्वक किया गया है। हिंदी के चहुमुखी विकास में इस मंच का निर्माण हिंदी रूपी पौधा को उर्वरक भूमि , समुचित खाद , पानी और प्रकाश देने जैसा कार्य है . और ये मंच सकारात्मक विचारो को एक सुनहरा अवसर और जागरूकता प्रदान करेगा। एक स्वस्थ सोच को एक उचित पृष्ठभूमि मिलेगी। सही दिशा निर्देश से रूप – रेखा तैयार होगी और इन सब से निकलकर आएगी हिंदी को अपनाने की अद्भ्य चाहत हिंदी को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाना, तकनिकी क्षेत्र, विज्ञानं आदि क्षेत्रो में विस्तार देना हम भारतीयों का कर्तव्य बनता है क्योंकि हिंदी स्वंय ही बहुत वैज्ञानिक भाषा है हिंदी को उसका उचित स्थान, मान संमान और उपयोगिता से अवगत हम मिल बैठ कर ही कर सकते है इसके लिए इस प्रकार के मंच का होना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हमारी एकजुटता हिंदी को फिर से अपने स्वर्ण युग में ले जायेगी। वर्तमान में किया गया प्रयास , संघर्ष , भविष्य में प्रकाश के आगमन का संकेत दे देता है। इस मंच के निर्माण व विकास से ही वो मुहीम निकल कर आयेगी जो हिंदी से जुडी सारे पूर्वग्रहों का अंत करेगी। मानसिक दासता से मुक्त करेगी और यह सिलसिला निरंतर चलता रहे, मार्ग प्रशस्त करता रहे ताकि हिंदी का स्वाभिमान अक्षुण रहे।
अभी तो इस मंच का अंकुर ही फुटा है, हमारा आप सब का प्रयास, प्रचार, हिंदी से स्नेह, हमारी शक्ति तथा आत्मविश्वास ही इसेमजबूति प्रदान करेगा।
ज आवश्यक्ता है कि सब से पहले हम इस मंच का प्रचार व परसार करें। अधिक से अधिक हिंदी प्रेमियों को इस मंच से जोड़ें। सभी सोशल वैबसाइट पर इस मंच का परचार करें। तभी ये संपूर्ण मंच बन सकेगा। ये केवल 1 या 2 के प्रयास से संभव नहीं है, अपितु इस के लिये हम सब को कुछ न कुछ योगदान अवश्य करना होगा।
तभी संभव है कि हम अपनी पावन भाषा को विश्व भाषा बना सकेंगे।
एक मंच हम सब हिंदी प्रेमियों, रचनाकारों, पाठकों तथा हिंदी में रूचि रखने वालों का साझा मंच है। आप को केवल इस समुह कीअपनी किसी भी ईमेल द्वारा सदस्यता लेनी है। उसके बाद सभी सदस्यों के संदेश या रचनाएं आप के ईमेल इनबौक्स में प्राप्त कर पाएंगे कोई भी सदस्य इस समूह को सबस्कराइब कर सकता है। सबस्कराइब के लिये
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bahut sundar kavita
ReplyDeleteSahi h... dekhte dekhte naya saal bhi aa jayga....
ReplyDeleteऔर देखो न पुरे साल का लेखा जोखा आपने कितने सुन्दर ढंग से उकेर दिया :)
ReplyDeleteआखिर १३ गया
ReplyDeleteनये ठौर के नये बौर की सुवास इसी तरह बिखरती रहे...आने वाले वर्ष की सबसे पहली शुभकामना..
ReplyDeletekuchh hi panne bache dairy ke .. bahut sundar ... par
ReplyDeleteyah ant hai naya dour fir .. umda aviykati ...:)
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (02-112-2013) को "कुछ तो मजबूरी होगी" (चर्चा मंचःअंक-1449)
पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच, देखते ही देखते वर्ष अपने समापन पर आ पहुंचा है!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.--कहना चाहूंगा -
ReplyDeleteवक्त आता है वक्त जाता है यह इंसान ही है जो इसे जान नहीं पाता है.
यह वक्त है जिसकी अपनी पाबंदियां है, और इंसान उसका शिकार बन जाता है.
धन्यवाद्.
december bhi aa gaya kya lekar chalna hai aur kya bisrana hai ab ye sochna hai
ReplyDeletesunder rachna jisne mujhe prerna di :)
shubhkamnayen
बहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteवक्त बीतते वक्त नहीं लगता
:-)
YAHI TO KAMAL HAI JO ATA HAI CHALA JATA HAI
ReplyDeleteबहुत सुंदर .....!!
ReplyDeleteसमय को रोकना किसी के बस में नहीं ...
ReplyDeleteभावमय प्रस्तुति ...
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
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