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15 December 2013

किसी के गम किसी से कम नहीं हैं

दूर जाने के अभी ये मौसम नहीं हैं
किसी के गम किसी से कम नहीं हैं

कोई चलता है धीरे कोई भाग रहा है 
उलझता है कोई सुलझता जा रहा है 

ये डोर है कैसी इसका साहिल कहाँ है 
कब्र में जी उठे कोई इस काबिल कहाँ है 

बेमौसम जिंदगी की कटती पतंग यहीं है
तस्वीरें बदलती जातीं कोई एक रंग नहीं है

मुसाफिर सफर अकेले रास्ता अनजाना है 
हमसफर न कोई यहाँ जाना पहचाना है

यह बात और है कि कोई समझता नहीं है
मन में रख कर सवाल कोई पूछता नहीं है

चौराहे कई कहीं पर मन का भरम नहीं है
रिश्ता न कोई फरिश्ता आप और हम नहीं है

दूर जाने के अभी ये मौसम नहीं हैं 
किसी के गम किसी से कम नहीं हैं  ।

~यशवन्त यश©

(भावना जी की टिप्पणी के बाद इसे थोड़ा सा बढ़ा दिया है) 

 

17 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.........

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  2. हां यशवंत जी ये जीवन ऐसा ही है... पर हां दूर जाने के अभी ये मौसम वाकई नहीं है :)

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  3. kisi ke gam kisi se kam nahi hain .. aaj mujhe yahi lag ra hai .. is kavita ko bhi thoda aur expand kariye achhi lag rahi hai padhne mein.

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    1. बढ़ा दिया है :)

      बढ़ाने की मैं खुद भी सोच रहा था कल रात एक ब्लॉग पोस्ट पढ़ते हुए ही यह पंक्तियाँ दिमाग में आई थीं जितना फलो बना उतना लिख कर छाप दिया था।

      सादर

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  4. सुंदर !
    मिलाकर बराबर बाँट लिये जाते हैं
    गम पूरे से आधे भी किये जाते हैँ :)

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  5. हर किसी को उसके गम और खुशियाँ मुबारक हों..यही हमें आगे बढने की प्रेरणा देते हैं

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  6. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना...

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  7. बढ़ाने के बाद और भी बढ़िया हो गया...

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  8. जिन्दगी ऐसी ही है कही धूप कही छांव..बहुत सुन्दर..

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  9. बहुत लाजवाब ... हर शेर मन की बात कह रहा है जैसे ...

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  10. is kavita ko aapki nai kavita "sannate ko todna hai" se joda ja sakta hai inka rhythm aur bhaav milta julta sa lag ra hai yaa shayad aisa mujhe hi lag rahaa ho ..

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    1. आपका कहना बिलकुल सही है। दोनों का फ़्लो एक जैसा ही है। लेकिन 'सन्नाटे को तोड़ना है 'मैंने लगभग 6 घंटे की मशक्कत के बाद लिखी है जबकि 'किसी के गम किसे कम नहीं है ' लिखने मे मात्र 30 मिनट ही लगे।

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  11. बहुत सुंदर आपकी कविता..

    सादर प्रणाम

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