-पेश है मन की कही कुछ बेतुकी सी-
कुछ नहीं तो रात में
सपने ही भले
तुम सोओ या जागो
अब हम तो चले
बंद आँखों मे
खुद की तस्वीर देखेंगे
सुबह उठ कर शीशे में
माथे की लकीर देखेंगे
दिन मे यूं तो सब हमें
फकीर समझेंगे
हर शाम महलों के
अमीर समझेंगे
पर्दों-मुखौटों के हर राज़
नाराज़ हो चले
सोते हैं हर समय
कभी तो जागते भले
कुछ नहीं तो रात में
सपने ही भले
गैरों की बारात में
अपने ही भले
सोना चांदी नहीं टकसाल में
भले कांसा ही ढले
कुछ भी नहीं बाज़ार में
अब हम तो चले।
~यशवन्त यश
कुछ नहीं तो रात में
सपने ही भले
तुम सोओ या जागो
अब हम तो चले
बंद आँखों मे
खुद की तस्वीर देखेंगे
सुबह उठ कर शीशे में
माथे की लकीर देखेंगे
दिन मे यूं तो सब हमें
फकीर समझेंगे
हर शाम महलों के
अमीर समझेंगे
पर्दों-मुखौटों के हर राज़
नाराज़ हो चले
सोते हैं हर समय
कभी तो जागते भले
कुछ नहीं तो रात में
सपने ही भले
गैरों की बारात में
अपने ही भले
सोना चांदी नहीं टकसाल में
भले कांसा ही ढले
कुछ भी नहीं बाज़ार में
अब हम तो चले।
~यशवन्त यश
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (05-12-2013) को "जीवन के रंग" चर्चा -1452
पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब...बंद आँखों में देखना आ जाये तो सारे राज खुलने लगते हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यश...
ReplyDeleteबंद आँखों में दीदार तेरा हो ...
बहुत ही अच्छी लगी रचना........शुभकामनायें ।
ReplyDeleteसुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 07/12/2013 को चलो मिलते हैं वहाँ .......( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 054)
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ...सुन्दर
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