आओ चलें कि, सर्द हवाओं का रुख मोड़ना है
आज नहीं तो कल, इस सन्नाटे को तोड़ना है
यह वक़्त खामोशी का नहीं,मूंह खोलने का है
जो कुछ दबा छुपा मन में, सब बोलने का है
कुबूल सच तो था पहले भी, इन्कार कब है
झूठ की हवेली में अदालत की, दरकार कब है
सब काबिल हैं यहाँ , माहिर अपने फन के
महफिल में सजे हुए, मोम के पुतले बन के
लहरों का ले हथोड़ा, पत्थर दिल पर वार कर
बनेगा नया इक रस्ता, हर कल को संवार कर
आओ चलें कि, इस कुहासे को झकझोरना है
अपनी कदमताल से, हर सन्नाटे को तोड़ना है ।
~यशवन्त यश©
आज नहीं तो कल, इस सन्नाटे को तोड़ना है
यह वक़्त खामोशी का नहीं,मूंह खोलने का है
जो कुछ दबा छुपा मन में, सब बोलने का है
कुबूल सच तो था पहले भी, इन्कार कब है
झूठ की हवेली में अदालत की, दरकार कब है
सब काबिल हैं यहाँ , माहिर अपने फन के
महफिल में सजे हुए, मोम के पुतले बन के
लहरों का ले हथोड़ा, पत्थर दिल पर वार कर
बनेगा नया इक रस्ता, हर कल को संवार कर
आओ चलें कि, इस कुहासे को झकझोरना है
अपनी कदमताल से, हर सन्नाटे को तोड़ना है ।
~यशवन्त यश©
बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteबहुत बढ़ियाँ रचना ...
ReplyDeleteसन्नाटे को चीरकर खुशियों के गीत गुनगुनाना है ...
:-)
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मृत्यु के बाद ?
वाह... बहुत खूब।
ReplyDeleteगजब कि चाह और जीवंतता
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया...
ReplyDeleteछंट जाये हर कुहासा...धूप की ऐसी हो वर्षा..बहुत सुंदर प्रेरित करते भाव !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteBahut Badhiya.....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteप्रेरित करते भाव. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है.. तोड़िये इस मनो-जेल को..
ReplyDeleteआओ चलें हम..सन्नाटे को तोड़ना है..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना..
सादर प्रणाम