(चित्र-हिंदुस्तान-लखनऊ-पेज-14) |
कहीं ज़्यादा गर्मी,कहीं ज़्यादा ठंड है
यह प्रकृति से खेलने का ही दंड है
यह प्रकृति से खेलने का ही दंड है
भूकंपों से कभी समझाती है हमें
तूफानों से कभी दहलाती है हमें
हरियाली क्यों हमें सुहाती नहीं
कंक्रीट उसको कभी लुभाती नहीं
उजड़ते गांवों का यह शहरीकरण है
कहीं ज़्यादा गर्मी,कहीं ज़्यादा ठंड है ।
~यशवन्त यश©
यही तो प्रक्रती से खेलने का दंड है अच्छी कविता बधाई
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
सच कहा....
ReplyDeleteऔर उतनी ही बेहतरीन अभिव्यक्ति....!!!
सच है ..... हम भी प्रकृति से खेल रहे हैं
ReplyDeleteबिलकुल अलग दृष्टि डाली है आपने. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसुंदर रचना ...!!!
ReplyDeleteी गर्मी कही ठंड है यही प्रकॄति का ढंड है
ReplyDeleteI like the music on your blog ,really beautiful !!
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ReplyDeleteऔर कम्बख्त यहाँ -३० डिग्री का प्रकोप झेल रहे हैं हम! :( ;)