04 January 2014

चलो कहीं चलें

भीड़ भरे चौराहों पर चलें
या सुनसान राहों पर चलें  
ऐ मेरे मन !
चलो कहीं चलें

जहां भागते समय का
कोई डर न हो
जहां हम हों और
किसी को खबर न हो

जहां मीलों फैली
धरती की छत पे
सितारे सजे हों
जहां चाँद और सूरज
साथ ही खड़े हों 

मावस का हर दिन
जहाँ पूनम की रातें हों
पास में हो क्षितिज
और आसमान से बातें हों 

तो किस बात की देर
आओ ख्वाबों के पार चलें
 ऐ मेरे मन !
चलो कहीं चलें। 

~यशवन्त यश©

17 comments:

  1. ख़्वाबों के पार चले
    चाँद के पास चलें
    कहीं तो चलें...

    बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

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  2. बहुत सुन्दर ......

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  3. काफी उम्दा प्रस्तुति.....

    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-01-2014) को "तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483" पर भी रहेगी...!!!

    आपको नव वर्ष की ढेरो-ढेरो शुभकामनाएँ...!!

    - मिश्रा राहुल

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  4. बहुत उम्दा प्रस्तुति !

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  5. बहुत सुन्दर रचना !
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |

    नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति

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  6. वाह ! बहुत ही सुंदर एवँ संतुलित रचना ! बहुत खूब !

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  7. मन तो ऐसे भी कहीं भी चला जाता है..जहां आप भी नहीं जा सकते..बहुत अच्छी कविता...

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  8. bahut sundar rachna ...mn ke bs me sab kuchh hai ....

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  9. बहुत सुन्दर रचना ..शुभकामनाएं

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  10. सुन्दर मनोभाव

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  11. मन को लेकर कहीं निकल जाना ही अच्छा है..क्योकि यही मन तो पागल है और यही मन इक बच्चा है..

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  12. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (3 से 9 जनवरी, 2014) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

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  13. बहुत सुन्दर

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  14. अहा ! सुन्दर!

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