घूम फिर कर
सिफर की तरह
वहीं आ कर मिलना है
जहां से चले थे
रास्तों से अनजान
अनकही- अनसुनी
मंज़िल की ओर
हमेशा रहा है
संदेह
जिसके अस्तित्व पर .....
न लोगों का विश्वास है
न जज़्बात हैं
कुबूल करने को
हैं तो बस
चुभीली बातों के
कुछ तीर
जिनके
सीने से लगते ही
भोथरे हो कर
कहीं छिटक जाने से
कायम रहती है
मेरी वह मंज़िल
जो
औरों की नज़रों में
सिर्फ काल्पनिक है
लेकिन
मुझे पता है
मैं वहीं से चला हूँ
वहीं पर जाने को
सिफर की तरह।
~यशवन्त यश©
सिफर की तरह
वहीं आ कर मिलना है
जहां से चले थे
रास्तों से अनजान
अनकही- अनसुनी
मंज़िल की ओर
हमेशा रहा है
संदेह
जिसके अस्तित्व पर .....
न लोगों का विश्वास है
न जज़्बात हैं
कुबूल करने को
हैं तो बस
चुभीली बातों के
कुछ तीर
जिनके
सीने से लगते ही
भोथरे हो कर
कहीं छिटक जाने से
कायम रहती है
मेरी वह मंज़िल
जो
औरों की नज़रों में
सिर्फ काल्पनिक है
लेकिन
मुझे पता है
मैं वहीं से चला हूँ
वहीं पर जाने को
सिफर की तरह।
~यशवन्त यश©
बहुत khoob
ReplyDeletebeautiful composition yashwant ji...
ReplyDeleteसिफर ही बस सच है ..... जिसने इसे समझ लिया ,उसने तो सब कुछ पा लिया ....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
अच्छी अभिव्यक्ति
katu hai par satya hai ..sundar prastuti ...
Deleteबहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबेहद सार्थक भाव...
सस्नेह
अनु
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-02-2014) को "अब छोड़ो भी.....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1511" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
ghum fir ke vahin milna hai sifar ki tarah....
ReplyDeletesach hai zindagi yahin ghumti hai...
sunder rahna
shubhkamnayen
अंततः ज़िन्दगी सिफर... बस यही सच है. बेहद भावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteजिंदगी सिफर .... फिर घूमफिर कर एक ही जगह पहुंचती है... बहुत सही बात
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आत्मबोध! जहाँ से चले थे वहीँ पहुंचना है, लेकिन जब पहुँच जाते हैं, तब एक आनंद भी होता है- आत्मज्ञान का!
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई!
सादर
मधुरेश
ise padhkar aaya-jaise jahaj ko panchhi laute fir fir jahaj par...
ReplyDeletesunder abhivyakti
shubhkamnayen