15 February 2014

मौसम का जादू एक बार फिर चल गया

बारिश की धुन में लिखते लिखते कुछ
निकल आई धूप तो मन भी बदल गया 

मौसम का जादू एक बार फिर चल गया

आसमान से झरते रूई के फाहे कहीं पर 
धुल कर धरती को नया रंग मिल गया 
सूरज को भी बादलों का संग मिल गया 

लग रहा चंचल बसंत मचल उठा है कुछ 
घट कर घटा कहीं पर सतरंग बिछ गया 
मौसम का जादू एक बार फिर चल गया

~यशवन्त यश©


नोट-पहली 2 पंक्तियाँ कल फेसबुक स्टेटस में लिखी थीं और 
तीसरी पंक्ति आदरणीया अनीता निहलानी जी ने वहाँ कमेन्ट मे दी थी।  
 

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

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  2. रखी रज़ाई निकल गया
    नाक जो बह गया :P
    बहुत सुंदर रचना
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. बहुत सुंदर रच बन गई। कल अधूरी थी आज पूरी हो गयी...वाह

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  4. आपकी प्रविष्टि् कल रविवार (16-02-2014) को "वही वो हैं वही हम हैं...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1525" पर भी रहेगी...!!!
    - धन्यवाद

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  5. मौसम का जादू तो आजकल रोजही नया चल रहा है ... आज तो आपकी कलम का जादू भी चल गया ... लाजवाब प्रस्तुति ..

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  6. man ko khila gai rachna :)

    shubhkamnayen

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  7. man ko khila gai rachna :)

    shubhkamnayen

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  8. man ko khila gai rachna :)

    shubhkamnayen

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  9. बहुत खूबसूरत एकदम बासंती मौसम की तरह :-)

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  10. गुलाबी मौसम की सुंदर अभिव्यक्ति.....

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  11. वाह..मौसम के बदलते हुए रूप शब्दों में और निखर आये हैं...

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