उठ जाओ कितने ही ऊपर
देखो चाहे गगन को छूकर
जुड़े रहना धरती से देखो
बच्चों ! प्यारे पौधे से सीखो।
वो तुम से कुछ नहीं लेता है
फल फूल हवा भी देता है
उसको स्वार्थ का पता नहीं
वृक्ष बन कर छाँव बिखेरता है ।
दुख जीवन के सभी झेल कर
आँधी औ तूफानों से खेल कर
सीना तान कर जीना देखो
बच्चों ! प्यारे पौधे से सीखो।
जुड़े रहना धरती से देखो
बच्चों ! प्यारे पौधे से सीखो।
वो तुम से कुछ नहीं लेता है
फल फूल हवा भी देता है
उसको स्वार्थ का पता नहीं
वृक्ष बन कर छाँव बिखेरता है ।
दुख जीवन के सभी झेल कर
आँधी औ तूफानों से खेल कर
सीना तान कर जीना देखो
बच्चों ! प्यारे पौधे से सीखो।
~यशवन्त यश©
बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें
=
कल शायद इसका प्रमाण-पत्र मिल जाये .... उसे भी यही स्थान दे दीजिएगा
बहुत शिक्षापरक
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-03-2014) को "पौधे से सीखो" (चर्चा मंच-1539) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को शनि अमावस्या और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeletei think bachcho se jyada bado ko isse sikhna chahie.....
ReplyDeletehmmmmmmmm..........
bahut hi khubsurat rachna.....:-)
sir dusro ko kahte ho aapne bhi to comments moderation on kar rakha hai...?????
ReplyDeleteCOMMENT MODERATION ऑफ करने के लिये तो मैंने किसी को कभी नहीं कहा।
Deleteवर्ड वेरिफिकेशनऑफ करने के लिये ज़रूर कहता हूँ।
sabse pahle toh bahut bahut badhaai .. seedhi saadi lekin saras kavita .. short n sweet.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
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