वक़्त के कत्लखाने में
कट कट कर
ज़िंदगी
नयी उम्मीदों की आस में
झेलती है
यादों के चुभते
हरे ज़ख़्मों की टीस....
ज़ख्म -
जिनके भरने का
भान होते ही
उन पर छिड़क दिया जाता है
नयी नयी बातों का
आयोडीन रहित
ताज़ा नमक....
जो कैद रखता है
दर्द को
नसों में भीतर तक
फिर भी निकलने नहीं देता
मूंह से एक भी आह
क्योंकि
~यशवन्त यश©
कट कट कर
ज़िंदगी
नयी उम्मीदों की आस में
झेलती है
यादों के चुभते
हरे ज़ख़्मों की टीस....
ज़ख्म -
जिनके भरने का
भान होते ही
उन पर छिड़क दिया जाता है
नयी नयी बातों का
आयोडीन रहित
ताज़ा नमक....
जो कैद रखता है
दर्द को
नसों में भीतर तक
फिर भी निकलने नहीं देता
मूंह से एक भी आह
क्योंकि
वक़्त के कत्लखाने में
कट कट कर
ज़िंदगी
सुन्न ज़ुबान
और सिले हुए होठों से
बयां नहीं कर सकती
अपनी तड़प
बस
झेलती रहती है
यादों के चुभते
हरे ज़ख़्मों की टीस
आज़ाद हो कर
मुक्त आकाश में
उड़ने की
तमन्ना लिये।
~यशवन्त यश©
सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteइस दर्द के पीछे ही छिपा है खुशियों का एक आसमान...बस खिड़की खोलने भर की देर है..
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 22/03/2014 को "दर्द की बस्ती":चर्चा मंच:चर्चा अंक:1559 पर.
ज़िन्दगीसुन्न जुबान और सिले हुए होंठों से बटन नहीं कर सकती
ReplyDeleteसच ही है अपना दर्द कब कहाँ बनता जाता है , सुन्दर अभिव्यक्ति
komal aur marmik ahsason ki khoobsurat abhiwayakti......
ReplyDeleteऔर बस वक़्त की सक्षम है उस कत्लखाने से निकालकर बाहर लाने में.
ReplyDeleteअति सुंदर अभिव्यक्ति! सादर..
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