टंगा हुआ है
एक आईना
वक़्त के कत्लखाने में
देख कर जिसमें
खुद का अक्स
अक्सर गुनगुनाती है जिंदगी
बीते दौर के नगमे
जो सहेजे हुए हैं
मन की एल्बम के
हर पन्ने पर .....
इन नगमों में
दर्द है
मस्ती है
बहती नदियां
और उनमें
तैरती कश्ती है
जो चलती जा रही है
अपनी मंज़िल की ओर
भँवरों में फंस कर
उबरते हुए
तेज़ लहरों में डगमगा कर
संभलते हुए .....
इन नगमों में
तस्वीरें हैं
उस बीते दौर की
जब खिलखिलाती थी
जिंदगी
हलाल होने को
वक़्त के
इसी कत्लखाने में।
~यशवन्त यश©
एक आईना
वक़्त के कत्लखाने में
देख कर जिसमें
खुद का अक्स
अक्सर गुनगुनाती है जिंदगी
बीते दौर के नगमे
जो सहेजे हुए हैं
मन की एल्बम के
हर पन्ने पर .....
इन नगमों में
दर्द है
मस्ती है
बहती नदियां
और उनमें
तैरती कश्ती है
जो चलती जा रही है
अपनी मंज़िल की ओर
भँवरों में फंस कर
उबरते हुए
तेज़ लहरों में डगमगा कर
संभलते हुए .....
इन नगमों में
तस्वीरें हैं
उस बीते दौर की
जब खिलखिलाती थी
जिंदगी
हलाल होने को
वक़्त के
इसी कत्लखाने में।
~यशवन्त यश©
सच कहा आपने, अपने अन्दर ही झाँकना पड़ेगा...सहजता से गहरी बात कहती कविता! !!
ReplyDeleteगहन अहुभूति...
ReplyDeleteजो भी बीत गया वह स्वप्न है और स्वप्न मिथ्या होते हैं..जिन्दगी तो बस वर्तमान के इस पल में है
ReplyDelete