वक़्त के कत्लखाने में
कैद जिंदगी
कभी कभी देख लेती है
उखड़ती साँसों की
खिड़कियों के
पर्दे हटा कर
बाहर की दुनिया
और हो जाती है हैरान
झोपड़ियों को घूरती
महलों की नज़रें देख कर ....
आज नहीं तो कल
फूस के ये नन्हें मकान
या तो खिसक जाएंगे
दो कदम आगे
या तो बदल लेंगे
खुद का रूप
या सिमट जाएंगे
लॉन की
हरी घास बन कर ....
शायद इसीलिए खुश है
जिंदगी
उखड़ती साँसों के
पर्दे डली
खिड़कियों के भीतर
वक़्त के कत्लखाने में
जिसके अंधेरे तहखाने की
सीढ़ियाँ
चढ़ती-उतरती है
अपनी मर्ज़ी से
बाहर के अंधेरे-उजालों से
बे परवाह हो कर।
~यशवन्त यश©
कैद जिंदगी
कभी कभी देख लेती है
उखड़ती साँसों की
खिड़कियों के
पर्दे हटा कर
बाहर की दुनिया
और हो जाती है हैरान
झोपड़ियों को घूरती
महलों की नज़रें देख कर ....
आज नहीं तो कल
फूस के ये नन्हें मकान
या तो खिसक जाएंगे
दो कदम आगे
या तो बदल लेंगे
खुद का रूप
या सिमट जाएंगे
लॉन की
हरी घास बन कर ....
शायद इसीलिए खुश है
जिंदगी
उखड़ती साँसों के
पर्दे डली
खिड़कियों के भीतर
वक़्त के कत्लखाने में
जिसके अंधेरे तहखाने की
सीढ़ियाँ
चढ़ती-उतरती है
अपनी मर्ज़ी से
बाहर के अंधेरे-उजालों से
बे परवाह हो कर।
~यशवन्त यश©
वाह बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .. www.kavineeraj.blogspot.in
ReplyDeletekuchh nirasha jhalak rahi hai
ReplyDeleteवाह क्या बात है!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत बढिया..शुभकामनाएं
ReplyDeletenice creation.
ReplyDeleteshubhkamnayen