जब महका करता था
हर गली कूंचा
फूलों की खुशबू से
और उस खुशबू को
अपने आगोश में ले कर
सुबह और शाम की
ठंडी हवा
फैला दिया करती थी
पूरे मोहल्ले में .....
जब इसी खुशबू को साथ लिये
डाल डाल पर बैठे पंछी
छेड़ा करते थे सरगम
और उसकी धुन पर
नाचा करते थे
छोटे छोटे बच्चे .....
बेखौफ निकलकर बाहर
घर की चारदीवारी से
रोज़ मिलते थे गले
अमीर और गरीब
सिर्फ उम्र के लिहाज के साथ
मगर आज ......?
आज क्यारियों से सिमट कर
फूलों की वह खुशबू
बोन्साई का रूप धर कर
कैद हो गयी है
छोटे छोटे गमलों के
दम घोटते दड़बों में ....
हवा आज भी चलती है
पर उड़ाती चलती है
नये बनते
मकानों के बाहर
फैली रेत और मौरंग.....
पंछी अब भी बैठते हैं
मगर डालों पर नहीं ....
घर के छज्जों पर लगे
कूलरों की
घड़ घड़ आवाज़
दबा देती है
सरगम के सुर .....
अब बच्चे नाचते नहीं
नचाया करते हैं
कीबोर्ड और माउस पर
अपनी नन्ही उँगलियाँ
दिखाया करते हैं करतब
स्क्रीन पर चलते
वीडियो गेम्स के ....
अब मिलते नहीं गले
मोहल्ले के अमीर-गरीब
क्योंकि उनके घरों के बीच
खुद चुकी है
दूरियों की गहरी खाई ....
वो दौर और था
यह दौर और है
आने वाला दौर
कुछ और होगा
पर क्या यह बदलाव
बदल सकेगा रंग
इन्सानों
और
जानवरों की
रग रग में बहते
लाल खून का ?
~यशवन्त यश©
हर गली कूंचा
फूलों की खुशबू से
और उस खुशबू को
अपने आगोश में ले कर
सुबह और शाम की
ठंडी हवा
फैला दिया करती थी
पूरे मोहल्ले में .....
जब इसी खुशबू को साथ लिये
डाल डाल पर बैठे पंछी
छेड़ा करते थे सरगम
और उसकी धुन पर
नाचा करते थे
छोटे छोटे बच्चे .....
बेखौफ निकलकर बाहर
घर की चारदीवारी से
रोज़ मिलते थे गले
अमीर और गरीब
सिर्फ उम्र के लिहाज के साथ
मगर आज ......?
आज क्यारियों से सिमट कर
फूलों की वह खुशबू
बोन्साई का रूप धर कर
कैद हो गयी है
छोटे छोटे गमलों के
दम घोटते दड़बों में ....
हवा आज भी चलती है
पर उड़ाती चलती है
नये बनते
मकानों के बाहर
फैली रेत और मौरंग.....
पंछी अब भी बैठते हैं
मगर डालों पर नहीं ....
घर के छज्जों पर लगे
कूलरों की
घड़ घड़ आवाज़
दबा देती है
सरगम के सुर .....
अब बच्चे नाचते नहीं
नचाया करते हैं
कीबोर्ड और माउस पर
अपनी नन्ही उँगलियाँ
दिखाया करते हैं करतब
स्क्रीन पर चलते
वीडियो गेम्स के ....
अब मिलते नहीं गले
मोहल्ले के अमीर-गरीब
क्योंकि उनके घरों के बीच
खुद चुकी है
दूरियों की गहरी खाई ....
वो दौर और था
यह दौर और है
आने वाला दौर
कुछ और होगा
पर क्या यह बदलाव
बदल सकेगा रंग
इन्सानों
और
जानवरों की
रग रग में बहते
लाल खून का ?
~यशवन्त यश©
bahut sundar ........samay ke sath bahut kuchh badal gaya rah gain sirph yaaden ......
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार 15 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
समय बह रहा है ।
ReplyDeleteबहुत खूब ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (15-04-2014) को "हालात समझ जाओ" (चर्चा मंच-1583) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut hi achha likha hai
ReplyDeleteshubhkamnayen
बिल्कुल सच कहा...इन दिनों यूं ही होता है...खुद गई है चौड़ी खाई
ReplyDeleteलहू का रंग तो सिर्फ लाल ही होता है … सुन्दर रचना
ReplyDeleteसमसायिक यथार्थपूर्ण रचना..बदलाव हर पहलु को खूबसूरती से छुआ है के मन ने..बधाई..
ReplyDeletevery nice*
ReplyDeletebahut hi achha se expain kiya hai aapne aise hi likhte rahiye*
Bahut Bahut Dhanyawad