जो अधिकार है
कभी कभी
होता है
वह भी कर्तव्य ....
और जो
कर्तव्य है
कभी कभी
होता है
वह भी अधिकार ....
फिर भी कुछ लोग
नहीं कर पाते
सच को स्वीकार .....
उनके मन का अंधेरा
निकलने नहीं देता
रोशनी के पार
और वह
काटते रहते हैं
चक्कर
अपनी उसी सोच के
चारों ओर ....
उन्हें आदत है
सुनने की
बरसों से बजती
वही जिद्दी धुन
नयी सरगम से बेखबर
जिसका हर राग
अभ्यस्त है
खुद को दोहराते रहने का ....
और इसीलिए
परिवर्तन की हवा
उनकी परिधि से बाहर
बहते रह कर
निभाती चलती है
अपना कर्तव्य
अपना अधिकार
बिना सोच
बिना विचार
यह जानकर भी
कि अनचाहे
अनजाने ही
उसे निकल जाना है
छू कर
अस्तित्व खोतीं
उन चट्टानों को
जो कभी
अड़ी खड़ी थीं
पहाड़ की तरह।
~यशवन्त यश©
कभी कभी
होता है
वह भी कर्तव्य ....
और जो
कर्तव्य है
कभी कभी
होता है
वह भी अधिकार ....
फिर भी कुछ लोग
नहीं कर पाते
सच को स्वीकार .....
उनके मन का अंधेरा
निकलने नहीं देता
रोशनी के पार
और वह
काटते रहते हैं
चक्कर
अपनी उसी सोच के
चारों ओर ....
उन्हें आदत है
सुनने की
बरसों से बजती
वही जिद्दी धुन
नयी सरगम से बेखबर
जिसका हर राग
अभ्यस्त है
खुद को दोहराते रहने का ....
और इसीलिए
परिवर्तन की हवा
उनकी परिधि से बाहर
बहते रह कर
निभाती चलती है
अपना कर्तव्य
अपना अधिकार
बिना सोच
बिना विचार
यह जानकर भी
कि अनचाहे
अनजाने ही
उसे निकल जाना है
छू कर
अस्तित्व खोतीं
उन चट्टानों को
जो कभी
अड़ी खड़ी थीं
पहाड़ की तरह।
~यशवन्त यश©
बढ़िया रचना...सार्थक और सामयिक !!
ReplyDeleteशुभकामनाएं
अनु
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.04.2014) को "शब्द कोई व्यापार नही है" (चर्चा अंक-1579)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteआओ चलें का समर्थन किया था वो टिप्प्णी तो रीसाईकिल बिन में चली गई ।पर क्या किया जाये बिना टिप्पणी किये भी तो रहा नहीं जाता है :)
ReplyDeleteचलिये कोई नहीं ।
सुंदर रचना है ।
पिछली पोस्ट पर आपकी टिप्पणी अपने आप स्पैम मे गयी थी।
Deleteप्रकाशित कर दी गयी है।
सादर
मुझे लगा यश को गुस्सा आ गया :)
Deletesarthak samayik abhivyakti .badhai
ReplyDeletesarthak samayik abhivyakti .badhai
ReplyDeletesamyik rachna ......aadat hi to hai jo insaan ko bhatka deti hai raah se ......
ReplyDeleteउम्दा लिखा है.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति। अधिकार और कर्तव्य साथ साथ चसत् हैं।
ReplyDeleteसही कहा है
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक रचना..शुभकामनाएं यशवंत..
ReplyDeleteबढ़िया और सार्थक रचना...बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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