अम्मा भूखी है, बच्चे बिलख रहे हैं, काका रो रहा है, अंगारे सुलग रहे हैं
सिसकती रूह को चुप कराने के लिए, अंधेरे में उजाले चमकाने के लिए
आओ मतदान करें...
कर्ज लेकर कई हरसूद मर रहे हैं, बूढ़े बाप बेटी के लिए तरस रहे हैं
बुझे हुए चूल्हों को जलाने के लिए, खेतों पर बादल बरसाने के लिए
आओ मतदान करें...
कौओं की पांख खुजलाने के लिए, खामोश चक्की को जगाने के लिए
भूखे-नंगे बदन को छुपाने के लिए, तन को निवाला खिलाने के लिए
आओ मतदान करें...
इंतजार को सिला दिलाने के लिए, कोशिशों को आजमाने के लिए
बहरों को नींद से उठाने के लिए, बिछड़ों को फिर मनाने के लिए
आओ मतदान करें...
सुलगते दंगों को बुझाने के लिए, अबला को सबल बनाने के लिए
आशा का दीया जलाने के लिए, खोया विश्वास जगाने के लिए
आओ मतदान करें...
जेलों से झांकती आहों के लिए, बॉर्डर को ताकती निगाहों के लिए
घर की ओर जाती राहों के लिए, जिस्म से लिपटी बांहों के लिए
आओ मतदान करें...
काशी-काबा संग लाने के लिए, सभ्यता-संस्कृति बचाने के लिए
विकसित अमन बनाने के लिए, चांद को भी चमन बनाने के लिए
आओ मतदान करें...
खेतों में हल उठाने के लिए, डूबते बाजार बचाने के लिए
उदास संसद बहलाने के लिए, धूर्तों को सबक सिखाने के लिए
आओ मतदान करें...
मंदिर-मस्जिद का बैर मिटाने के लिए, सूनी मांगों को फिर सजाने के लिए
धर्मों में सच्ची आस्था जगाने के लिए, शांति के परिंदों को उड़ाने के लिए
आओ मतदान करें...
- अमित बैजनाथ गर्ग 'जैन'
सिसकती रूह को चुप कराने के लिए, अंधेरे में उजाले चमकाने के लिए
आओ मतदान करें...
कर्ज लेकर कई हरसूद मर रहे हैं, बूढ़े बाप बेटी के लिए तरस रहे हैं
बुझे हुए चूल्हों को जलाने के लिए, खेतों पर बादल बरसाने के लिए
आओ मतदान करें...
कौओं की पांख खुजलाने के लिए, खामोश चक्की को जगाने के लिए
भूखे-नंगे बदन को छुपाने के लिए, तन को निवाला खिलाने के लिए
आओ मतदान करें...
इंतजार को सिला दिलाने के लिए, कोशिशों को आजमाने के लिए
बहरों को नींद से उठाने के लिए, बिछड़ों को फिर मनाने के लिए
आओ मतदान करें...
सुलगते दंगों को बुझाने के लिए, अबला को सबल बनाने के लिए
आशा का दीया जलाने के लिए, खोया विश्वास जगाने के लिए
आओ मतदान करें...
जेलों से झांकती आहों के लिए, बॉर्डर को ताकती निगाहों के लिए
घर की ओर जाती राहों के लिए, जिस्म से लिपटी बांहों के लिए
आओ मतदान करें...
काशी-काबा संग लाने के लिए, सभ्यता-संस्कृति बचाने के लिए
विकसित अमन बनाने के लिए, चांद को भी चमन बनाने के लिए
आओ मतदान करें...
खेतों में हल उठाने के लिए, डूबते बाजार बचाने के लिए
उदास संसद बहलाने के लिए, धूर्तों को सबक सिखाने के लिए
आओ मतदान करें...
मंदिर-मस्जिद का बैर मिटाने के लिए, सूनी मांगों को फिर सजाने के लिए
धर्मों में सच्ची आस्था जगाने के लिए, शांति के परिंदों को उड़ाने के लिए
आओ मतदान करें...
- अमित बैजनाथ गर्ग 'जैन'
078770 70861
कवि. लेखक. पत्रकार. प्रेस सलाहकार.
amitbaijnathgarg@gmail.com
amitbaijnathgarg@gmail.com
प्रस्तुति-आदरणीया प्रियंका जैन जी से प्राप्त ईमेल के सौजन्य से
बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDelete-सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 17/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (16-04-2014) को गिरिडीह लोकसभा में रविकर पीठासीन पदाधिकारी-चर्चा मंच 1584 में "अद्यतन लिंक" पर भी है।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुभ प्रभात
ReplyDeleteबहुत खूब
चरैवेति-चरैवेति
सादर
गहरी बात .. पर सही कहा है मतदान से ही आने वाला है ये बदलाव ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सामयिक चिंतन एवं जागरूकता भरी प्रस्तुति। .
ReplyDeleteachhi rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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