इस मौसम की
हर तपती दुपहर को
मैं देखता हूँ
कुछ लोगों को
फुटपाथों पर
बिछे
लू के बिस्तर पर
अंगड़ाइयाँ लेते हुए ....
या
गहरी नींद मे
फूलों की खुशबू के
हसीन ख्वाबों को
साथ ले कर
किसी और दुनिया की
हरियाली में
टहलते हुए ....
ये कुछ लोग
हैं तो
हमारी इसी दुनिया के बाशिंदे -
मगर
अनकही बन्दिशें
हमें रोज़ रोकती हैं
इनके करीब जाने से
क्योंकि इनके
शरीर और नथुनों
मे बसी है
वही बासी गंध
जिसे हम उड़ेल कर आते हैं
पास के कूड़ा घर में.....
ऐसे लोग
अपने काले
मटमैले चेहरे और
तन पर
बस नाम के कपड़े पहने
गिनते रहते हैं
दिन की रोशनी और
रात के अँधेरों को
जिसे हम पर कुर्बान कर के
वो रहते हैं
आसमान की छत
पाताल की धरती पर
सदियों से
यूं ही...
इसी तरह....।
~यशवन्त यश©
हर तपती दुपहर को
मैं देखता हूँ
कुछ लोगों को
फुटपाथों पर
बिछे
लू के बिस्तर पर
अंगड़ाइयाँ लेते हुए ....
या
गहरी नींद मे
फूलों की खुशबू के
हसीन ख्वाबों को
साथ ले कर
किसी और दुनिया की
हरियाली में
टहलते हुए ....
ये कुछ लोग
हैं तो
हमारी इसी दुनिया के बाशिंदे -
मगर
अनकही बन्दिशें
हमें रोज़ रोकती हैं
इनके करीब जाने से
क्योंकि इनके
शरीर और नथुनों
मे बसी है
वही बासी गंध
जिसे हम उड़ेल कर आते हैं
पास के कूड़ा घर में.....
ऐसे लोग
अपने काले
मटमैले चेहरे और
तन पर
बस नाम के कपड़े पहने
गिनते रहते हैं
दिन की रोशनी और
रात के अँधेरों को
जिसे हम पर कुर्बान कर के
वो रहते हैं
आसमान की छत
पाताल की धरती पर
सदियों से
यूं ही...
इसी तरह....।
~यशवन्त यश©
बहुत बढ़िया ।
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