कुछ लोग
चलते रहते हैं
जीवन के हर सफर में
कभी अकेले
कभी किसी के साथ ....
पीते हुए
कभी कड़वे -मीठे घूंट
और कभी
सुनते हुए
दहशत की चिल्लाहटें ....
उनकी राह में
फूलों के गद्दे पर
बिछी होती है
काँटों की चादर
जिस पर चल चल कर
अभ्यस्त हो जाते हैं
उनके कदम
सहने को
वक़्त की हर ठोकर
और साथ ही
महसूस करने को
हर मुरझाते
फूल की तड़प ....
कुछ लोग
बस चलते रहते हैं
बिना रुके
बिना थके
क्योंकि वो जानते हैं
इंसान के रुकने का वक़्त
उस पल आता है
जब सांसें
थमने को होती हैं
हमेशा के लिए।
~यशवन्त यश©
चलते रहते हैं
जीवन के हर सफर में
कभी अकेले
कभी किसी के साथ ....
पीते हुए
कभी कड़वे -मीठे घूंट
और कभी
सुनते हुए
दहशत की चिल्लाहटें ....
उनकी राह में
फूलों के गद्दे पर
बिछी होती है
काँटों की चादर
जिस पर चल चल कर
अभ्यस्त हो जाते हैं
उनके कदम
सहने को
वक़्त की हर ठोकर
और साथ ही
महसूस करने को
हर मुरझाते
फूल की तड़प ....
कुछ लोग
बस चलते रहते हैं
बिना रुके
बिना थके
क्योंकि वो जानते हैं
इंसान के रुकने का वक़्त
उस पल आता है
जब सांसें
थमने को होती हैं
हमेशा के लिए।
~यशवन्त यश©
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना बुधवार 28 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुंदर ।
ReplyDeletebahut achha likha hai
ReplyDeleteshubhkamnayen
shaskat abhivaykti....
ReplyDeleteलेकिन यह जीवन क्या वास्तव में जीवन है..कभी जीवन में थम कर देखें वे लोग तो जानेंगे रुकने का वक्त तो तब भी नहीं आता जब सांसे थमने को होती हैं..
ReplyDeleteसुन्दर रचना यशजी
ReplyDeleteबहुत बढिया यशवंत ...शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ......सुन्दर भाव ..बधाई
ReplyDeleteभ्रमर५
वाह, बहुत खूब
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