(चित्र:गूगल के सौजन्य से ) |
आज वो सूखा पेड़
पतझड़ मे छोड़ चली
सूखी पत्तियों को
नीचे बिखरा देख
पल पल गिन रहा है दिन
क्या होगा उसका
धरती के बिन.......?
धरती -
जिसने आश्रय दे कर
हो कर खड़े
जीना सिखलाया
धूप- छांव -तूफान झेल कर
रहना अड़े
उसने बतलाया .....
भूकंपों से निडर बनाकर
फूलों की खुशबू बिखरा कर
हिल डुल हवा के झोंको से
देता जीवन
जो पलछिन ...
क्या होगा उसका
धरती के बिन........?
बन कर अवशेष
कहीं जलना होगा
या रूप बदल कर
सजना होगा
आरों की धार पर
चल-फिर कर
कीलों से ठुक-पिट
कहीं जुड़ना होगा
देखो....
जो भी होना होगा
पर उन साँसों का क्या होगा
जिन्हें जवानी में दे कर
अब देख रहा वो ऐसे दिन
बरसों था जो हरा भरा
क्या होगा उसका
धरती के बिन........?
~यशवन्त यश©
सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति बहुत खूब !
ReplyDeletebahut umda vichar ......
ReplyDeletebahut umda vichar ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता यश जी. हमें अब भी जाग जाना होगा।
ReplyDeleteBeautiful work yashwant ji
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपकी रचना और उसके पीछे की सोच.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपकी रचना और उसके पीछे की सोच.
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचना ! बधाई !
ReplyDeleteधरा तो आधार है. उसके बिना तो सब निराधार ही होते हैं! सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसादर
मधुरेश