सच है कि पेट जिनके
भरे होते हैं हद से ज़्यादा।
क्या होती है भूख उनको समझ नहीं आता ॥
सोते हैं सिरहाने रख कर वो गांधी के चेहरे को ।
सच का समंदर आँखों से कभी बाहर नहीं आता ॥
झांक कर तो देखें कभी ऐ सी कारों के बाहर ।
है मंज़र यह कि उन्हें कुछ भी नहीं सिखाता ॥
दिल दहलते हैं हर रोज़ अखबारों को देखकर ।
दौलत का यह रास्ता गरीब के दर नहीं जाता॥
~यशवन्त यश©
गहरी ... दिल को कटोचती है आपकी बात ...
ReplyDeleteसटीक ।
ReplyDeleteएक नए समाजवादी आंदोलन की आवश्यकता है.
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