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गरीब की पीठ पर,कोड़े से पड़े दिन हैं ये ।
कड़वे होते तो असर करते नीम की तरह
मीठे होते तो हलक मे घुलते गुड़ की तरह।
अंबानियों के महलों में रोशन होते दिन हैं ये
फुटपथियों के झोपड़ों में सिसकते दिन हैं ये ।
~यशवन्त यश©
यथार्थवादी लेखन
ReplyDeleteयथार्थ ।
ReplyDeleteउम्मीद पर दुनिया कायम है..
ReplyDeleteफुटपाथ की झोपड़ियों के दिन कभी फिरते ही नहीं, चाहे पहले, चाहे अबकी बार...
ReplyDeleteबहुत उम्दा लिखा है, बधाई.
अभी तो समय बतानेवाला है क्या होता है ... दिन कहाँ हैं ...
ReplyDeleteग़रीबों के लिए कहाँ बदलती हैँ कहानियाँ! सच लिखा है आपने!
ReplyDeleteसादर
मधुरेश