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09 July 2014

नशा शराब में होता तो........

'नशा शराब में होता
तो नाचती बोतल
मैकदे झूमते
पैमानों मे होती हलचल'

पर नशा
शराब
या काँच की बोतल में नहीं
मन के भीतर ही कहीं
रचा बसा होता है
दबा सा होता है
जो बस
उभर आता है
कुछ बूंदों के
हलक मे उतरते ही
बना देता है
चेहरे को
कभी विकृत
कभी विदूषक
धकेल देता है
लंबी प्रतीक्षा की
अंतहीन
गहरी
अंधेरी खाई में
जिससे कुछ लोग
निकल आते हैं
बाहर
और कुछ
फंसे रहते हैं
वहीं
छटपटाते हुए।

मन के भीतर के नशे को
उभरने के लिये
ज़रूरत
शराब की नहीं
शब्दों के
पत्थर की होती है
जिसकी
हल्की सी टक्कर
पैदा कर देती है
कल्पना की शांत नदी में
नयी धारणाओं के
अनेकों कंपन
अनेकों लहरें
जिनका तीखापन
तय करता जाता है
अपने बहाव में
साथ लिए जाता है
उजली राहों से
नयी मंज़िल की ओर।

~यशवन्त यश©

9 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति.....अच्छा लगा ब्लॉगसेतु के द्वारा आप के ब्लॉग तक पहुंचना.

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  2. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...

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  3. वाह...बहुत सुंदर रचना !

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  4. बहुत अच्छी रचना
    वाकई में लोगों का अच्छा जीवन छीनकर उन्हें बहुत पीछे धकेल देता है

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