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22 July 2014

दीवारों से कुछ बातें ....

अच्छा है
कभी कभी
कर लेना
दीवारों से कुछ बातें ....
वह जैसी हैं
वैसी ही रहती हैं
बिल्कुल गंभीर
शांत
और कभी कभी
हल्के से मुस्कुराती हुई
राज़दार बन कर
सुनती हैं
सब बातें
बिना किसी तर्क-कुतर्क
बिना किसी क्रोध के ....
जिंदगी के
अँधेरों में
जब
छोड़ कर चल देते हैं
अपने ही
अपनों का हाथ
दीवारों का साथ
सुकून देता है
इसलिये
अच्छा है
कभी कभी
कर लेना
कुछ बातें
दीवारों से
क्योंकि दीवारें
बेहतर होती हैं
इन्सानों से।

~यशवन्त यश©

19 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-07-2014) को "सहने लायक ही दूरी दे" {चर्चामंच - 1683} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हार्दिक धन्यवाद सर !

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  2. पर कहते हैं की दीवारों के भी कान होते हैं .. तो क्या ऐसे में उन्हें राज़दार बनाना सही है :) .... सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

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    1. आपने अच्छी बात कही मैम...दीवारों के कान इंसान के कानों से तो बेहतर होते ही हैं। दीवारें चुगलखोरी नहीं करतीं लेकिन उनके पीछे छिपे इंसान से सावधान रहना ज़रूरी है। और जहां किसी भी इंसान के होने की संभावना न हो, जब अपने साथ छोड़ कर चले गए हों वहाँ एक अकेले के सामने दीवारों पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता :)

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  3. आपकी लिखी रचना बुधवार 23 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. शालिनी जी की बात में दम है और आप की बात भी कहाँ कम हैं मैं जिस समय दीवार से बात करूँगा उसके कानो में रूई ठूस दूँगा :)

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  5. बहुत खूब ...... शुभकामनाएं !

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  6. संवादहीनता से तो बेहतर है, दीवारों से बातें कर लेना।

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  7. sahi kaha yashwant bhai.....diwar bhi tab dost say kam nahi hote

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  8. रुई ही डालनी हो तो दीवारें ही क्यों तब तो हम किसी को भी दिलेहाल सुना सकते हैं....तो आकाश को क्यों नहीं..वह भी तो कुछ नहीं बोलता शायद कोई ऊपरवाला हो तो उस तक भी बात खुदबखुद पहुंच जाएगी

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  9. क्या बात है। मन को छू गई रचना

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  10. बहुत सुंदर ।

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  12. badi khamoshi se sunati hai ye deeware kuch nahi kahti... lagta hai ki ye jyada mere zasbaato ki kadr karti hain...... bahut sunder rachna !!

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  13. सच है , दीवारें विश्वसनीय राजदार होती है , इंसान की नेक नियति तो शक के दायरे में गिनी जाने लगी है

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