अच्छा है
कभी कभी
कर लेना
दीवारों से कुछ बातें ....
वह जैसी हैं
वैसी ही रहती हैं
बिल्कुल गंभीर
शांत
और कभी कभी
हल्के से मुस्कुराती हुई
राज़दार बन कर
सुनती हैं
सब बातें
बिना किसी तर्क-कुतर्क
बिना किसी क्रोध के ....
जिंदगी के
अँधेरों में
जब
छोड़ कर चल देते हैं
अपने ही
अपनों का हाथ
दीवारों का साथ
सुकून देता है
इसलिये
अच्छा है
कभी कभी
कर लेना
कुछ बातें
दीवारों से
क्योंकि दीवारें
बेहतर होती हैं
इन्सानों से।
~यशवन्त यश©
कभी कभी
कर लेना
दीवारों से कुछ बातें ....
वह जैसी हैं
वैसी ही रहती हैं
बिल्कुल गंभीर
शांत
और कभी कभी
हल्के से मुस्कुराती हुई
राज़दार बन कर
सुनती हैं
सब बातें
बिना किसी तर्क-कुतर्क
बिना किसी क्रोध के ....
जिंदगी के
अँधेरों में
जब
छोड़ कर चल देते हैं
अपने ही
अपनों का हाथ
दीवारों का साथ
सुकून देता है
इसलिये
अच्छा है
कभी कभी
कर लेना
कुछ बातें
दीवारों से
क्योंकि दीवारें
बेहतर होती हैं
इन्सानों से।
~यशवन्त यश©
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-07-2014) को "सहने लायक ही दूरी दे" {चर्चामंच - 1683} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद सर !
Deleteपर कहते हैं की दीवारों के भी कान होते हैं .. तो क्या ऐसे में उन्हें राज़दार बनाना सही है :) .... सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteआपने अच्छी बात कही मैम...दीवारों के कान इंसान के कानों से तो बेहतर होते ही हैं। दीवारें चुगलखोरी नहीं करतीं लेकिन उनके पीछे छिपे इंसान से सावधान रहना ज़रूरी है। और जहां किसी भी इंसान के होने की संभावना न हो, जब अपने साथ छोड़ कर चले गए हों वहाँ एक अकेले के सामने दीवारों पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता :)
Deleteआपकी लिखी रचना बुधवार 23 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
शालिनी जी की बात में दम है और आप की बात भी कहाँ कम हैं मैं जिस समय दीवार से बात करूँगा उसके कानो में रूई ठूस दूँगा :)
ReplyDeleteहाहाहा
Deleteबहुत खूब ...... शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसंवादहीनता से तो बेहतर है, दीवारों से बातें कर लेना।
ReplyDeleteसुन्दर.
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
behtreen...
ReplyDeletesahi kaha yashwant bhai.....diwar bhi tab dost say kam nahi hote
ReplyDeleteरुई ही डालनी हो तो दीवारें ही क्यों तब तो हम किसी को भी दिलेहाल सुना सकते हैं....तो आकाश को क्यों नहीं..वह भी तो कुछ नहीं बोलता शायद कोई ऊपरवाला हो तो उस तक भी बात खुदबखुद पहुंच जाएगी
ReplyDeleteक्या बात है। मन को छू गई रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletebadi khamoshi se sunati hai ye deeware kuch nahi kahti... lagta hai ki ye jyada mere zasbaato ki kadr karti hain...... bahut sunder rachna !!
ReplyDeleteसच है , दीवारें विश्वसनीय राजदार होती है , इंसान की नेक नियति तो शक के दायरे में गिनी जाने लगी है
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