जितना आसान है
कागज़ पर उकेर देना
शून्य का चित्र
उतना ही कठिन है
ढालना
और समझना
शून्य का चरित्र .....
जो आदि से अंत तक
गुज़रता है
अनगिनत
घुमावदार मोड़ों से
जिसके रास्ते में
कभी मिलती है
समुद्र की गहराई
अंतहीन गहरी खाई
कभी मिलते हैं
मौसम के अनेकों रूप
कहीं छांव कहीं धूप
कहीं कांटे-फूल
गड्ढे
और न जाने क्या क्या
फिर भी
वह वृत्त
वह शून्य
वहीं आ मिलता है
जहां से
चला था
अपने सफर में .....
हज़ार यादों की
एक पन्ने मे रची
बेहद जटिल किताब
जिसके भीतर
कहीं छुपी सी हो
उस शून्य को
उकेरना
बहुत आसान है
पर उसे समझना
बिलकुल भी
संभव नहीं।
~यशवन्त यश©
कागज़ पर उकेर देना
शून्य का चित्र
उतना ही कठिन है
ढालना
और समझना
शून्य का चरित्र .....
जो आदि से अंत तक
गुज़रता है
अनगिनत
घुमावदार मोड़ों से
जिसके रास्ते में
कभी मिलती है
समुद्र की गहराई
अंतहीन गहरी खाई
कभी मिलते हैं
मौसम के अनेकों रूप
कहीं छांव कहीं धूप
कहीं कांटे-फूल
गड्ढे
और न जाने क्या क्या
फिर भी
वह वृत्त
वह शून्य
वहीं आ मिलता है
जहां से
चला था
अपने सफर में .....
हज़ार यादों की
एक पन्ने मे रची
बेहद जटिल किताब
जिसके भीतर
कहीं छुपी सी हो
उस शून्य को
उकेरना
बहुत आसान है
पर उसे समझना
बिलकुल भी
संभव नहीं।
~यशवन्त यश©
बहुत सही कहा है..शून्य दीखता है पर उसी में सब समाया है
ReplyDeleteकई बार सरलता ही सबसे बड़ी कठिनाई होती है।
ReplyDeleteबेहतरीन ...
ReplyDeleteशून्य को पूर्ण भी कह सकते हैं। जिसमें सब कुछ समाया है।
ReplyDeleteशून्य का चरित्र बड़ा अजीब सा है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति।
नई रचना : सूनी वादियाँ